अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 5
सं॑दं॒शानां॑ पल॒दानां॒ परि॑ष्वञ्जल्यस्य च। इ॒दं मान॑स्य॒ पत्न्या॑ न॒द्धानि॒ वि चृ॑तामसि ॥
स्वर सहित पद पाठस॒म्ऽदं॒शाना॑म् । प॒ल॒दाना॑म् । परि॑ऽस्वञ्जल्यस्य । च॒ । इ॒दम् । मान॑स्य । पत्न्या॑: । न॒ध्दानि॑ । वि । चृ॒ता॒म॒सि॒ ॥३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
संदंशानां पलदानां परिष्वञ्जल्यस्य च। इदं मानस्य पत्न्या नद्धानि वि चृतामसि ॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽदंशानाम् । पलदानाम् । परिऽस्वञ्जल्यस्य । च । इदम् । मानस्य । पत्न्या: । नध्दानि । वि । चृतामसि ॥३.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शाला बनाने की विधि का उपदेश।[इस सूक्त का मिलान अथर्व काण्ड ३ सूक्त १२ से करो]
पदार्थ
(इदम्) अब (मानस्य) मान [सम्मान] की (पत्न्याः) रक्षा करनेवाली [शाला] के (संदंशानाम्) सण्डासियों [वा आँकड़ों] को (च) और (पलदानाम्) पल [अर्थात् सुवर्ण आदि की तोल और विघटिका मुहूर्त आदि] देनेवाले [यन्त्रों] के (परिष्वञ्जल्यस्य) जोड़ के (नद्धानि) बन्धनों को (वि चृतामसि) हम भली-भाँति बाँधते हैं ॥५॥
भावार्थ
मनुष्य पदार्थ पकड़ने के साधनों और वैज्ञानिक तोल और समय जानने के यन्त्रों को अपने घरों में यथावत् बनावें ॥५॥
टिप्पणी
५−(संदंशानाम्) सम्+दंश दंशने-अच्। ग्रहणसाधनानां यन्त्रविशेषाणाम् (पलदानाम्) पल गतौ रक्षणे च-अप्+दा दाने-क। पलस्य सुवर्णादितोलनस्य विघटिकादिकालस्य च दातॄणां ज्ञापकानां यन्त्राणाम् (परिष्वञ्जल्यस्य) मङ्गेरलच्। उ० ५।७०। परि+ष्वञ्ज परिष्वङ्गे-अलच्। सख्युर्यः। पा० ५।१।१२६। भावे यः। परिष्वञ्जनस्य। संयोगस्य (च) (इदम्) इदानीम् (मानस्य) मान पूजायाम्-अच्। सम्मानस्य (पत्न्याः) रक्षित्र्याः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
'मानस्य पत्नी' शाला
पदार्थ
१. (इदम्) = [इदानीम्] अब (मानस्य पत्न्या:) = मान की रक्षा करनेवाली, अर्थात् सर्वत्र मान [माप]-पूर्वक बनाई गई इस शाला के (सन्दंशानाम्) = कैंची के आकार की जुड़ी लकड़ियों के (पलदानाम्) = [पल straw, husk] तृणों से बनी चटाइयों के (च) = और (परिष्वञ्जलस्य) = [परि स्वज] चारों ओर के पारस्परिक आलिंगन [बन्धन] के (नद्धानि) = बन्धनों को (विचृतामसि) = विशेषरूप से ग्रथित करते हैं।
भावार्थ
शाला नाप-तोलकर बनाई जाए। इसके 'सन्दंशों, पलदों व परिष्वजल्य' के बन्धन सुदृढ़ हों।
भाषार्थ
(इदम्) अव (मानस्य पत्न्याः) मान को रक्षा करने वाली शाला सम्बन्धी (संदंशानाम्) सन्दंशों के (पलदानाम्) पलदों के, (च) और (परिश्वञ्जल्यस्य) सब ओर बन्धे या लगाए [चित्रों] के (नद्धानि) वन्धनों को (विचृतामसि) विशेषतया हम ग्रथित करते हैं।
टिप्पणी
[मानस्य पन्त्याः= अपनी शाला का होना "मान" का चिह्न है। किराये की शाला में वास "मान" का चिह्न नहीं। पत्न्याः= पत्नी का अर्थ मन्त्र में विवाहित पत्नी नहीं, अपितु इसका अर्थ है "रक्षा करने वाली" अतः वैदिक पद यौगिक हैं। "पत्नी" पद "पा रक्षणे' का रूप है। अथवा "पत्नी की तरह रक्षा करने वाली"। उपमावाचक पद लुप्त है। संदंशानाम्= सण्डाशियां या clamps। पलदानाम्= पल, घटिका, मूहूर्त आदि प्रदर्शक यन्त्र। clamps (पाहू, कोनिया)।
विषय
शाला, महाभवन का निर्माण और प्रतिष्ठा।
भावार्थ
(मानस्य) माप का (पत्न्याः) पालन करने वाली अर्थात् ठीक प्रकार से मापी हुई शाला में लगी (संदंशानाम्) कैंची के आकार से जुड़ी लकड़ियों के और (पलदानां) घास फूस के (परिष्वञ्जल्यस्य च) चारों ओर सटे हुए (नद्धानि) बंधनों को (इदम्) इस प्रकार से (वि चृतामसि) खोल दें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। शाला देवता। १, ५ , ८, १४, १६, १८, २०, २२, २४ अनुष्टुभः। ६ पथ्यापंक्तिः। ७ परा उष्णिक्। १५ त्र्यवसाना पञ्चपदातिशक्वरी। १७ प्रस्तारपंक्तिः। २१ आस्तारपंक्तिः। २५, ३१ त्रिपादौ प्रजापत्ये बृहत्यौ। २६ साम्नी त्रिष्टुप्। २७, २८, २९ प्रतिष्ठा नाम गायत्र्यः। २५, ३१ एकावसानाः एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
The Good House
Meaning
Of the house of protection and honour of the family, we firm up the bonds of clamps and connections, weather materials of roofing and wainscoting, and the total bonding of walls, corners and the roof for total balancing of the building.
Translation
Of the Clamps (sandansa), of the mats (palada); and of the queen of buildings (manasya patnya), we hereby detach the ceremonial ties and bands.
Translation
We, thus, loose all the bands and ties of straw in bundles, of clamps and of all that binds this house which is the well- established outline of the measurement.
Translation
We strengthen the ties and bands of straw in bundles, and of clamps of this house which is the preserver of our honor.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(संदंशानाम्) सम्+दंश दंशने-अच्। ग्रहणसाधनानां यन्त्रविशेषाणाम् (पलदानाम्) पल गतौ रक्षणे च-अप्+दा दाने-क। पलस्य सुवर्णादितोलनस्य विघटिकादिकालस्य च दातॄणां ज्ञापकानां यन्त्राणाम् (परिष्वञ्जल्यस्य) मङ्गेरलच्। उ० ५।७०। परि+ष्वञ्ज परिष्वङ्गे-अलच्। सख्युर्यः। पा० ५।१।१२६। भावे यः। परिष्वञ्जनस्य। संयोगस्य (च) (इदम्) इदानीम् (मानस्य) मान पूजायाम्-अच्। सम्मानस्य (पत्न्याः) रक्षित्र्याः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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