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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 6 के मन्त्र
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अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
ऋषि: - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - नागी त्रिपदा गायत्री
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
33
यो वि॒द्याद्ब्रह्म॑ प्र॒त्यक्षं॒ परूं॑षि॒ यस्य॑ संभा॒रा ऋचो॒ यस्या॑नूक्यम् ॥
स्वर सहित पद पाठय: । वि॒द्यात् । ब्रह्म॑ । प्र॒ति॒ऽअक्ष॑म् । परूं॑षि । यस्य॑ । स॒म्ऽभा॒रा: । ऋच॑: । यस्य॑ । अ॒नू॒क्य᳡म् ॥६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यो विद्याद्ब्रह्म प्रत्यक्षं परूंषि यस्य संभारा ऋचो यस्यानूक्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठय: । विद्यात् । ब्रह्म । प्रतिऽअक्षम् । परूंषि । यस्य । सम्ऽभारा: । ऋच: । यस्य । अनूक्यम् ॥६.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
संन्यासी और गृहस्थ के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(यः) संयमी पुरुष [अथवा जो कोई विद्वान् हो वह] (प्रत्यक्षम्) प्रत्यक्ष करके (ब्रह्म) ब्रह्म [परमात्मा] को (विद्यात्) जाने (यस्य) जिस [ब्रह्म] के (परूँषि) पालन सामर्थ्य (संभाराः) विविध संग्रह और (यस्य) जिसका (अनूक्यम्) अनुकूल वाक्य (ऋचः) ऋचाएँ [स्तुतियोग्य वेदमन्त्र] हैं ॥१॥
भावार्थ
विद्वान् संयमी पुरुष सर्वपोषक, सर्वोपदेशक परमात्मा को साक्षात् कर सकते हैं ॥१॥ मन्त्र १-४ और ६ स्वामिदयानन्दकृत संस्कारविधि संन्यासाश्रमप्रकरण में व्याख्यात हैं ॥
टिप्पणी
१−(यः) यम नियमने-ड। संयमी। संन्यासी। अथवा यो विद्वान् भवतु सः (विद्यात्) जानीयात् (ब्रह्म) अ० १।८।४। सर्वेभ्यो बृहन्तं परमेश्वरम् (प्रत्यक्षम्) साक्षात्करेण (परूँषि) अर्तिपॄवपि०। उ० २।११७। पॄ पालनपूरणयोः−उसि। पालनसामर्थ्यानि (यस्य) ब्रह्मणः (संभाराः) विविधाः संग्रहाः (ऋचः) ऋच स्तुतौ−क्विप्। ऋग् वाङ्नाम-निघ० १।११। स्तुत्या वेदवाचः (यस्य) (अनूक्यम्) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। अनु+वच परिभाषणे-ण्यत्, छान्दसं सम्प्रसारणम्, चजोः कु घिण्ण्यतोः। पा० ७।३।५२। इति कुत्वम्। अनुकूलवाक्यम् ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Atithi Yajna: Hospitality
Meaning
One who would know Brahma first hand by direct experience may know that Brahma is that Supreme Purusha, Ultimate living Reality, which as a ‘Person’ is constituted of the entire structure of existence and its knowledge: whose spine is the Rks.
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