Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 55 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 55/ मन्त्र 10
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    यू॒यम॒स्मान्न॑यत॒ वस्यो॒ अच्छा॒ निरं॑ह॒तिभ्यो॑ मरुतो गृणा॒नाः। जु॒षध्वं॑ नो ह॒व्यदा॑तिं यजत्रा व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यू॒यम् । अ॒स्मान् । न॒य॒त॒ । वस्यः॑ । अच्छ॑ । निः । अं॒ह॒तिऽभ्यः॑ । म॒रु॒तः॒ । गृ॒णा॒नाः । जु॒षध्व॑म् । नः॒ । ह॒व्यऽदा॑तिम् । य॒ज॒त्राः॒ । व॒यम् । स्या॒म॒ । पत॑यः । र॒यी॒णाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यूयमस्मान्नयत वस्यो अच्छा निरंहतिभ्यो मरुतो गृणानाः। जुषध्वं नो हव्यदातिं यजत्रा वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यूयम्। अस्मान्। नयत। वस्यः। अच्छ। निः। अंहतिऽभ्यः। मरुतः। गृणानाः। जुषध्वम्। नः। हव्यऽदातिम्। यजत्राः। वयम्। स्याम। पतयः। रयीणाम् ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 55; मन्त्र » 10
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    हे (गृणानाः) स्तुति करते हुए (मरुतः) विद्वान् मनुष्यो ! (यूयम्) आप लोग (वस्यः) अति धन से युक्त (अस्मान्) हम लोगों की रक्षा कीजिये और (अंहतिभ्यः) मारते हैं जिनसे उन अस्त्रों से पृथक् (अच्छा) उत्तम प्रकार (निः, नयत) निरन्तर पहुँचाइये और (नः) हम लोगों की (जुषध्वम्) सेवा करिये। और हे (यजत्राः) मिलनेवाले जनो ! हम लोगों के लिये (हव्यदातिम्) देने योग्य दान को प्राप्त कराइये जिससे (वयम्) हम लोग (रयीणाम्) धनों के (पतयः) पालन करनेवाले (स्याम) होवें ॥१०॥

    भावार्थ - जिज्ञासुजन विद्वानों की प्रार्थना इस प्रकार करें कि आप लोग हम लोगों को दुष्ट आचरण से अलग करके धर्मयुक्त मार्ग को प्राप्त कराइये ॥१०॥ इस सूक्त में मरुत नाम से विद्वान् आदि के गुणों का वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पचपनवाँ सूक्त और अठारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top