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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 79/ मन्त्र 4
    ऋषिः - सत्यश्रवा आत्रेयः देवता - उषाः छन्दः - भुरिग्बृहती स्वरः - मध्यमः

    अ॒भि ये त्वा॑ विभावरि॒ स्तोमै॑र्गृ॒णन्ति॒ वह्न॑यः। म॒घैर्म॑घोनि सु॒श्रियो॒ दाम॑न्वन्तः सुरा॒तयः॒ सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । ये । त्वा॒ । वि॒भा॒ऽव॒रि॒ । स्तोमैः॑ । गृ॒णन्ति॑ । वह्न॑यः । म॒घैः । म॒घो॒नि॒ । सु॒ऽश्रियः॑ । दाम॑न्ऽवन्तः । सु॒ऽरा॒तयः॑ । सुऽजा॑ते । अश्व॑ऽसूनृते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि ये त्वा विभावरि स्तोमैर्गृणन्ति वह्नयः। मघैर्मघोनि सुश्रियो दामन्वन्तः सुरातयः सुजाते अश्वसूनृते ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि। ये। त्वा। विभाऽवरि। स्तोमैः। गृणन्ति। वह्नयः। मघैः। मघोनि। सुऽश्रियः। दामन्ऽवन्तः। सुऽरातयः। सुऽजाते। अश्वऽसूनृते ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 79; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 21; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    हे (मघोनि) बहुत धन से युक्त (सुजाते) उत्तम विद्या से प्रकट हुई (अश्वसूनृते) बड़े ज्ञान से युक्त और (विभावरि) प्रकाशवती प्रातर्वेला के सदृश वर्त्तमान विद्यायुक्त स्त्री ! (ये) जो विद्वान् जन (सुश्रियः) सुन्दर लक्ष्मी जिनकी ऐसे (दामन्वन्तः) बहुत दान क्रिया से युक्त (सुरातयः) सुन्दर दान की इच्छा जिनकी वे (वह्नयः) पहुँचानेवाले अग्नियों के समान वर्त्तमान विद्वान् जन (मघैः) धनों से और (स्तोमैः) स्तोत्रों से (त्वा) आप को (अभि) सन्मुख (गृणन्ति) स्तुति करते हैं, वे आप से सत्कार करने योग्य हैं ॥४॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वही प्रशंसित स्त्री है, जो पिता और पति के कुल में श्रेष्ठ आचरण से पिता और पति के कुल को प्रकाशित करे ॥४॥

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