ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 49/ मन्त्र 3
अ॒रु॒षस्य दुहि॒तरा॒ विरू॑पे॒ स्तृभि॑र॒न्या पि॑पि॒शे सूरो॑ अ॒न्या। मि॒थस्तुरा॑ वि॒चर॑न्ती पाव॒के मन्म॑ श्रु॒तं न॑क्षत ऋ॒च्यमा॑ने ॥३॥
स्वर सहित पद पाठअ॒रु॒षस्य॑ । दु॒हि॒तरा॑ । विरू॑पे॒ इति॒ विऽरू॑पे । स्तृऽभिः॑ । अ॒न्या । पि॒पि॒शे । सूरः॑ । अ॒न्या । मि॒थः॒ऽतुरा॑ । वि॒चर॑न्ती॒ इति॑ वि॒ऽचर॑न्ती । पा॒व॒के इति॑ । मन्म॑ । श्रु॒तम् । न॒क्ष॒त॒ । ऋ॒च्यमा॑ने॒ इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अरुषस्य दुहितरा विरूपे स्तृभिरन्या पिपिशे सूरो अन्या। मिथस्तुरा विचरन्ती पावके मन्म श्रुतं नक्षत ऋच्यमाने ॥३॥
स्वर रहित पद पाठअरुषस्य। दुहितरा। विरूपे इति विऽरूपे। स्तृऽभिः। अन्या। पिपिशे। सूरः। अन्या। मिथःऽतुरा। विचरन्ती इति विऽचरन्ती। पावके इति। मन्म। श्रुतम्। नक्षत। ऋच्यमाने इति ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 49; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
विषय - अब स्त्री-पुरुष कैसे होकर कैसे वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ -
हे स्त्री पुरुषो वा राजा और प्रजाजनो ! जैसे (अरुषस्य) कुछ लालरंगवाले अग्नि के (विरूपे) विविधरूप वा विरुद्धस्वरूपयुक्त दिन और रात्रि (मिथस्तुरा) परस्पर हिंसा करनेवाले (विचरन्ती) विविध गति से प्राप्त होते हुए (ऋच्यमाने) स्तूयमान (पावके) पवित्र (दुहितरा) कन्याओं के समान वर्तमान हैं उनमें (अन्या) और अर्थात् दोनों से अलग रात्रिरूप कन्या (स्तृभिः) नक्षत्रादिकों के साथ (पिपिशे) पीसती हुई अङ्ग के समान वर्त्तमान है (अन्या) और दिनरूप कन्या अर्थात् (सूरः) सूर्य्य किरणों से पीसती हुई वर्त्तमान है, वे दोनों समस्त जगत् को (नक्षतः) व्याप्त होते हैं, वैसे मिलकर प्रीति से (श्रुतम्) श्रवण वा (मन्म) विज्ञान को तुम दोनों प्राप्त होओ ॥३॥
भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्यरूप अग्नि के रात्रि-दिन पुत्री के समान वर्त्तमान हैं तथा दोनों विलक्षण सदा सम्बन्ध करनेवाले होते हैं, वैसे ही विचित्र वस्त्र और आभूषणवाले, विविध विद्यायुक्त और प्रशंसित होते हुए विद्या विज्ञान और धर्मोन्नति में सम्बन्ध और प्रीति करनेवाले स्त्री-पुरुष हों ॥३॥
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