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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 20/ मन्त्र 3
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - विराडुष्निक् स्वरः - ऋषभः

    वि॒द्मा हि रु॒द्रिया॑णां॒ शुष्म॑मु॒ग्रं म॒रुतां॒ शिमी॑वताम् । विष्णो॑रे॒षस्य॑ मी॒ळ्हुषा॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्म । हि । रु॒द्रिया॑णाम् । शुष्म॑म् । उ॒ग्रम् । म॒रुता॑म् । शमी॑ऽवताम् । विष्णोः॑ । ए॒षस्य॑ । मी॒ळ्हुषा॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्मा हि रुद्रियाणां शुष्ममुग्रं मरुतां शिमीवताम् । विष्णोरेषस्य मीळ्हुषाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्म । हि । रुद्रियाणाम् । शुष्मम् । उग्रम् । मरुताम् । शमीऽवताम् । विष्णोः । एषस्य । मीळ्हुषाम् ॥ ८.२०.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 36; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (रुद्रियाणाम्) दुःखापहारी (शिमीवताम्) कर्मपरायण और (विष्णोः) पोषक (एषस्य) अभिलषणीय अन्नों की (मीढुषाम्) वर्षा करनेवाले (मरुताम्) मरुन्नामक सैन्यजनों को (विद्म+हि) हम लोग अवश्य जानते हैं ॥३ ॥

    भावार्थ - भाव इसका यह है कि सेना की क्या शक्ति है, उसको क्या अधिकार है, वह जगत् में किस प्रकार उपकारिणी बन सकती है, इत्यादि विषय विद्वानों को जानने चाहियें । वे सैन्यजन दुष्टों को शिष्ट बनावें । यदि वे अपनी दुष्टता न छोड़ें, तो उनके धन से देश के उपकार सिद्ध करें ॥३ ॥

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