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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 25/ मन्त्र 24
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    स्मद॑भीशू॒ कशा॑वन्ता॒ विप्रा॒ नवि॑ष्ठया म॒ती । म॒हो वा॒जिना॒वर्व॑न्ता॒ सचा॑सनम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्मद॑भीशू॒ इति॒ स्मत्ऽअ॑भीशू । कशा॑ऽवन्ता । विप्रा॑ । नवि॑ष्ठया । म॒ती । म॒हः । वा॒जिनौ॑ । अर्व॑न्ता । सचा॑ । अ॒स॒न॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्मदभीशू कशावन्ता विप्रा नविष्ठया मती । महो वाजिनावर्वन्ता सचासनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्मदभीशू इति स्मत्ऽअभीशू । कशाऽवन्ता । विप्रा । नविष्ठया । मती । महः । वाजिनौ । अर्वन्ता । सचा । असनम् ॥ ८.२५.२४

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 25; मन्त्र » 24
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 25; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    मैं उपासक (नविष्ठया+मतीः) नूतन-२ बुद्धियों से युक्त (अर्वन्ता) द्विविध इन्द्रिय (सचा) साथ ही (असनम्) प्राप्त किये हुए हूँ । कैसे हैं (अस्मदभीशू) शोभनज्ञान-रज्जुयुक्त (कशावन्ता) विवेककशासंयुक्त (विप्रा) मेधावी विचारशील (महः) बड़े (वाजिनौ) शीघ्रगामी हैं ॥२४ ॥

    भावार्थ - कर्मेन्द्रिय और ज्ञानन्द्रिय दोनों को शुद्ध कर्मकुशल, विवेकयुक्त और धीर बनावे ॥२४ ॥

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