Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 81 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 81/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कुसीदी काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    वि॒द्मा हि त्वा॑ तुविकू॒र्मिं तु॒विदे॑ष्णं तु॒वीम॑घम् । तु॒वि॒मा॒त्रमवो॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्म । हि । त्वा॒ । तु॒वि॒ऽकू॒र्मिम् । तु॒विऽदे॑ष्णम् । तु॒वीऽम॑घम् । तु॒वि॒ऽमा॒त्रम् । अवः॑ऽभिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्मा हि त्वा तुविकूर्मिं तुविदेष्णं तुवीमघम् । तुविमात्रमवोभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विद्म । हि । त्वा । तुविऽकूर्मिम् । तुविऽदेष्णम् । तुवीऽमघम् । तुविऽमात्रम् । अवःऽभिः ॥ ८.८१.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 81; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 37; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    हे इन्द्र ! (अवोभिः) आपकी महती रक्षा के द्वारा हम मनुष्य (विद्म+हि) इस बात को अच्छे प्रकार जानते हैं कि (त्वा) तू (तुविकूर्मिम्) सर्वकर्मा महाशक्ति (तुविदेष्णम्) सर्वदाता महादानी (तुविमघम्) सर्वधन (तुविमात्रम्) सर्वव्यापी है, ऐसा तुझे हम जानते हैं, अतः हम पर कृपा कर ॥२ ॥

    भावार्थ - ईश्वर सर्वशक्तिमान् सर्वधन सर्वदाता है, अतः वही प्रार्थ्य और स्तुत्य है ॥२ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top