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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 12
    ऋषिः - शुनःशेप ऋषिः देवता - वरुणो देवता छन्दः - विराडार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    उदु॑त्त॒मं व॑रुण॒ पाश॑म॒स्मदवा॑ध॒मं वि म॑ध्य॒मꣳ श्र॑थाय। अथा॑ व॒यमा॑दित्य व्र॒ते तवाना॑गसो॒ऽअदि॑तये स्याम॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्। उ॒त्त॒ममित्यु॑त्ऽत॒मम्। व॒रु॒ण॒। पाश॑म्। अ॒स्मत्। अव॑। अ॒ध॒मम्। वि। म॒ध्य॒मम्। श्र॒था॒य॒। श्र॒थ॒येति॑ श्रथय। अथ॑। व॒यम्। आ॒दि॒त्य॒। व्र॒ते। तव॑। अना॑गसः। अदि॑तये। स्या॒म॒ ॥१२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदुत्तमँवरुण पाशमस्मदवाधमँवि मध्यमँ श्रथाय । अथा वयमादित्य व्रते तवानागसोऽअदितये स्याम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। उत्तममित्युत्ऽतमम्। वरुण। पाशम्। अस्मत्। अव। अधमम्। वि। मध्यमम्। श्रथाय। श्रथयेति श्रथय। अथ। वयम्। आदित्य। व्रते। तव। अनागसः। अदितये। स्याम॥१२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 12
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    Translation -
    O venerable Lord, loosen the bonds that hold me; loosen the bonds upper, middle and lower. We shall Obey your eternal laws, faithfully follow your command and thereby avoid sin. (1)

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