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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 42
    ऋषिः - अप्रतिरथ ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - विराडार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    उद्ध॑र्षय मघव॒न्नायु॑धा॒न्युत्सत्व॑नां माम॒कानां॒ मना॑सि। उद् वृ॑त्रहन् वा॒जिनां॒ वाजि॑ना॒न्युद्रथा॑नां॒ जय॑तां यन्तु॒ घोषाः॑॥४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्। ह॒र्ष॒य॒। म॒घ॒व॒न्निति॑ मघऽवन्। आयु॑धानि। उत्। सत्व॑नाम्। मा॒म॒काना॑म्। मना॑सि। उत्। वृ॒त्र॒ह॒न्निति॑ वृत्रऽहन्। वा॒जिना॑म्। वाजि॑नानि। उत्। रथा॑नाम्। जय॑ताम्। य॒न्तु॒। घोषाः॑ ॥४२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्धर्षय मघवन्नायुधान्युत्सत्वनाम्मामकानां मनाँसि । उद्वृत्रहन्वाजिनाँवाजिनान्युद्रथानाञ्जयताँयन्तव घोषाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। हर्षय। मघवन्निति मघऽवन्। आयुधानि। उत्। सत्वनाम्। मामकानाम्। मनासि। उत्। वृत्रहन्निति वृत्रऽहन्। वाजिनाम्। वाजिनानि। उत्। रथानाम्। जयताम्। यन्तु। घोषाः॥४२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 42
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    Translation -
    O bounteous Lord, let our weapons be raised with joy; let the spirits of our warriors rise high. O slayer of evils, may the speed of our horses and the din of our winning chariots go up. (1)

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