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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 20
    ऋषिः - याज्ञवल्क्यः देवता - आपो देवता छन्दः - भूरिक् बृहती, स्वरः - मध्यमः
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    अन्ध॒ स्थान्धो॑ वो भक्षीय॒ मह॑ स्थ॒ महो॑ वो भक्षी॒योर्ज॒ स्थोर्जं॑ वो भक्षीय रा॒यस्पोष॑ स्थ रा॒यस्पोषं॑ वो भक्षीय॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अन्धः॑। स्थ॒। अन्धः॑। वः॒। भ॒क्षी॒य॒। महः॑। स्थ॒। महः॑। वः॒। भ॒क्षी॒य॒। ऊ॒र्जः॑। स्थ॒। ऊर्ज्ज॑म्। वः॒। भ॒क्षी॒य॒। रा॒यः। पोषः॑। स्थ॒। रा॒यः। पोष॑म्। वः॒। भ॒क्षी॒य॒ ॥२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्ध स्थान्धो वो भक्षीय मह स्थ महो वो भक्षीयोर्ज स्थोर्जँवो भक्षीय रायस्पोष स्थ रायस्पोषँवो भक्षीय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अन्धः। स्थ। अन्धः। वः। भक्षीय। महः। स्थ। महः। वः। भक्षीय। ऊर्जः। स्थ। ऊर्ज्जम्। वः। भक्षीय। रायः। पोषः। स्थ। रायः। पोषम्। वः। भक्षीय॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 20
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    Translation -
    You are food; may I eat your food. You are respectable; may I also enjoy your respect. You are vigour; may I receive your vigour. You are plentiful riches; may I enjoy your plentiful riches. (1)

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