Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 2
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - जगती स्वरः - निषादः
    1

    यु॒ञ्जते॒ मन॑ऽउ॒त यु॑ञ्जते॒ धियो॒ विप्रा॒ विप्र॑स्य बृह॒तो वि॑प॒श्चितः॑।वि होत्रा॑ दधे वयुना॒विदेक॒ऽइन्म॒ही दे॒वस्य॑ सवि॒तुः परि॑ष्टुतिः॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒ञ्जते॑। मनः॑। उ॒त। यु॒ञ्ज॒ते॒। धियः॑। विप्राः॑। विप्र॑स्य। बृ॒ह॒तः। वि॒प॒श्चित॒ इति॑ विपः॒ऽचितः॑ ॥ वि। होत्राः॑। द॒धे॒। व॒यु॒ना॒वित्। व॒यु॒न॒विदिति॑ वयुन॒ऽवित्। एकः॑। इत्। म॒ही। दे॒वस्य॑। स॒वि॒तुः। परि॑ष्टुतिः। परि॑स्तुति॒रिति॒ परि॑ऽस्तुतिः ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युञ्जते मनऽउत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः । वि होत्रा दधे वयुनाविदेकऽइन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुतिः स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    युञ्जते। मनः। उत। युञ्जते। धियः। विप्राः। विप्रस्य। बृहतः। विपश्चित इति विपःऽचितः॥ वि। होत्राः। दधे। वयुनावित्। वयुनविदिति वयुनऽवित्। एकः। इत्। मही। देवस्य। सवितुः। परिष्टुतिः। परिस्तुतिरिति परिऽस्तुतिः॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 37; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    Translation -
    Discerning intellectuals harness their minds as well as their intellect towards the supreme learned intellectual. Cognizant of all the deeds, He alone accomplishes the cosmic sacrifice, Great is the glory of the creator God. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top