Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 40/ मन्त्र 1
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - आत्मा देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    3

    ई॒शा वा॒स्यमि॒दंꣳ सर्वं॒ यत्किञ्च॒ जग॑त्यां॒ जग॑त्।तेन॑ त्य॒क्तेन॑ भुञ्जीथा॒ मा गृ॑धः॒ कस्य॑ स्वि॒द्धन॑म्॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ई॒शा। वा॒स्य᳖म्। इ॒दम्। स॒र्व॑म्। यत्। किम्। च॒। जग॑त्याम्। जग॑त् ॥ तेन॑। त्य॒क्तेन॑। भु॒ञ्जी॒थाः॒। मा। गृ॒धः॒। कस्य॑। स्वि॒त्। धन॑म् ॥१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ईशा वास्यमिदँ सर्वँयत्किञ्च जगत्याञ्जगत् । तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ईशा। वास्यम्। इदम्। सर्वम्। यत्। किम्। च। जगत्याम्। जगत्॥ तेन। त्यक्तेन। भुञ्जीथाः। मा। गृधः। कस्य। स्वित्। धनम्॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 40; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    Translation -
    All whatsoever exists in this universe, is pervaded by God supreme. Enjoy it, knowing full well that it will have to be renounced. Do not be greedy. To whom do the riches belong? (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top