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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1764
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
स꣢ नो꣣ वि꣡श्वा꣢ दि꣣वो꣢꣫ वसू꣣तो꣡ पृ꣢थि꣣व्या꣡ अधि꣢꣯ । पु꣣नान꣡ इ꣢न्द꣣वा꣡ भ꣢र ॥१७६४॥
स्वर सहित पद पाठसः꣢ । नः꣣ । वि꣡श्वा꣢꣯ । दि꣣वः꣢ । व꣡सु꣢꣯ । उ꣣त꣢ । उ꣢ । पृथिव्याः꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । पु꣣नानः꣢ । इ꣣न्दो । आ꣡ । भ꣢र ॥१७६४॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो विश्वा दिवो वसूतो पृथिव्या अधि । पुनान इन्दवा भर ॥१७६४॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । नः । विश्वा । दिवः । वसु । उत । उ । पृथिव्याः । अधि । पुनानः । इन्दो । आ । भर ॥१७६४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1764
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 19; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
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भावार्थ - परमेश्वराच्या कृपेने आम्ही शारीरिक उन्नती व आत्मिक उन्नती करत अभ्युदय व नि:श्रेयसचे अधिकारी बनावे. ॥४॥ या खंडात प्राकृतिक व आध्यात्मिक उषा, प्राण-अपान यामुळे चालणारा शरीर रथ, परमेश्वर व परमेश्वराकडून होणारी आनंद वर्षा यांचे वर्णन असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती आहे
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