अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 19
सूक्त - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - ओदन सूक्त
ओ॑द॒नेन॑ यज्ञव॒चः सर्वे॑ लो॒काः स॑मा॒प्याः ॥
स्वर सहित पद पाठओ॒द॒नेन॑ । य॒ज्ञ॒ऽव॒च: । सर्वे॑ । लो॒का: । स॒म्ऽआ॒प्या᳡: ॥३.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
ओदनेन यज्ञवचः सर्वे लोकाः समाप्याः ॥
स्वर रहित पद पाठओदनेन । यज्ञऽवच: । सर्वे । लोका: । सम्ऽआप्या: ॥३.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 19
भाषार्थ -
(ओदनेन) ओदन द्वारा (यज्ञवचः) पञ्चमहायज्ञ आदि में प्रोक्त सब लोक प्राप्त हो जाते हैं।
टिप्पणी -
[ओदन-ब्रह्म जब जीवन में परिपक्व हो जाता है, और उस द्वारा आत्मिक उन्नति हो जाती है, तो मानो उसे सब लोक प्राप्त हो गए हैं। देखो अथर्व० (९।६। पर्याय ४), इस में केवल अतिथि यज्ञ द्वारा सब प्रकार के यज्ञों के फलों की प्राप्ति कही है]।