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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 14/ मन्त्र 16
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - भुरिक् प्राजापत्या अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    स्वा॑हाका॒रेणा॑न्ना॒देनान्न॑मत्ति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वा॒हा॒ऽका॒रेण॑ । अ॒न्न॒ऽअ॒देन॑ । अन्न॑म् । अ॒त्ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१४.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वाहाकारेणान्नादेनान्नमत्ति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वाहाऽकारेण । अन्नऽअदेन । अन्नम् । अत्ति । य: । एवम् । वेद ॥१४.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 14; मन्त्र » 16

    भाषार्थ -
    (यः) जो व्यक्ति (एवम्) इस प्रकार के तथ्य को (वेद) जानता और तदनुसार आचरण करता है, वह (अन्नादेन) अन्न खिलाने वाले (स्वाहाकारेण) स्वाहोच्चारण द्वारा (अन्नम्, अत्ति) अन्न खाता है।

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