अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 24
सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आसुरी बृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
ससर्वा॑नन्तर्दे॒शाननु॒ व्यचलत् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । सर्वा॑न् । अ॒न्त॒:ऽदे॒शान् । अनु॑ । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥६.२४॥
स्वर रहित मन्त्र
ससर्वानन्तर्देशाननु व्यचलत् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । सर्वान् । अन्त:ऽदेशान् । अनु । वि । अचलत् ॥६.२४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 24
भाषार्थ -
(सः) वह व्रात्य-संन्यासी (सर्वान्) सब (अन्तर्देशान्) अवान्तर निर्देशों (अनु) लक्ष्य कर के (व्यचलत्) विशेषतया चला।
टिप्पणी -
[अन्तर्देशान्= योग के गौण निर्देशों अर्थात् शौच, सन्तोष, तपः, स्वाध्याय आदि। मन्त्र २३ तक योग के मुख्य निर्देशों का कथन हुआ है। वर्तमान मन्त्र द्वारा यह कथन किया है कि जीवन्मुक्त योग के मुख्य निर्देशों के साथ साथ गौण निर्देशों का भी पालन करता रहता है]