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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 136

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 136/ मन्त्र 14
    सूक्त - देवता - प्रजापतिः छन्दः - उरोबृहती सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    विदे॑वस्त्वा म॒हान॑ग्नी॒र्विबा॑धते मह॒तः सा॑धु खो॒दन॑म्। कु॑मारी॒का पि॑ङ्गलि॒का कार्द॒ भस्मा॑ कु॒ धाव॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विदे॑व: । त्वा । म॒हान् । अग्नी: । विबा॑धते । मह॒त: । सा॑धु । खो॒दन॑म् । कु॒मा॒रि॒का । पि॑ङ्गलि॒का । कार्द॒ । भस्मा॑ । कु॒ । धाव॑ति ॥१३६.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विदेवस्त्वा महानग्नीर्विबाधते महतः साधु खोदनम्। कुमारीका पिङ्गलिका कार्द भस्मा कु धावति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विदेव: । त्वा । महान् । अग्नी: । विबाधते । महत: । साधु । खोदनम् । कुमारिका । पिङ्गलिका । कार्द । भस्मा । कु । धावति ॥१३६.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 136; मन्त्र » 14

    भाषार्थ -
    हे पत्नी! (त्वा) तुझ और अन्य (महानग्नीः) महा-अपठिता पत्नियों को, (महतः साधु खोदनम्) घर के बड़ों की कठोरवाणी द्वारा पिसाई से (विदेवः) कोई विशेष देव ही (वि बाधते) हटाएगा। देख, (कुमारिका) कुत्सित कामवासनावाली, और इसलिए (पिङ्गलिका) पीली पड़ गई स्त्री (कार्द भस्मा) कर्दम अर्थात् कीचड़ों तथा भस्मों के सदृश (कु धावति) धरा-शायी हो जाती है, अथवा उसकी कुत्सित-गति होती है।

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