अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 26/ मन्त्र 10
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - सोमः
छन्दः - द्विपदा प्राजापत्या बृहती
सूक्तम् - नवशाला सूक्त
सोमो॑ युनक्तु बहु॒धा पयां॑स्य॒स्मिन्य॒ज्ञे सु॒युजः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसोम॑: । यु॒न॒क्तु॒ । ब॒हु॒ऽधा। पयां॑सि । अ॒स्मिन् । य॒ज्ञे । सु॒ऽयुज॑: । स्वाहा॑ ॥२६.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमो युनक्तु बहुधा पयांस्यस्मिन्यज्ञे सुयुजः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठसोम: । युनक्तु । बहुऽधा। पयांसि । अस्मिन् । यज्ञे । सुऽयुज: । स्वाहा ॥२६.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 10
भाषार्थ -
(सोमः) सोम-औषध (अस्मिन् यज्ञे) इस यज्ञ में (बहुधा) बहुत प्रकार के (पयांसि) पेय ओषधि-रसों को ( युनक्तु) सम्वद्ध करे, (सुयुज:) तथा उत्तम योजनाओं का सम्पादन करे और (स्वाहा ) स्वाहा के उच्चारणपूर्वक आहुतियाँ हों।
टिप्पणी -
["सोमो वीरुधामधिपतिः" (अथर्व० ५।२४।७)। सोम औषध के अद्भुत गुणों का वर्णन मन्त्रों में हुआ है, अतः वीरुधों में इसे मुख्य औषध माना है और वीरुधों का अधिपति कहा है।]