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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 39 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 39/ मन्त्र 3
अ॒मा॒जुर॑श्चिद्भवथो यु॒वं भगो॑ऽना॒शोश्चि॑दवि॒तारा॑प॒मस्य॑ चित् । अ॒न्धस्य॑ चिन्नासत्या कृ॒शस्य॑ चिद्यु॒वामिदा॑हुर्भि॒षजा॑ रु॒तस्य॑ चित् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒मा॒ऽजुरः॑ । चि॒त् । भ॒व॒थः॒ । यु॒वम् । भगः॑ । अ॒ना॒शोः । चि॒त् । अ॒वि॒तारा॑ । अ॒प॒मस्य॑ । चि॒त् । अ॒न्धस्य॑ । चि॒त् । ना॒स॒त्या॒ । कृ॒शस्य॑ । चि॒त् । यु॒वाम् । इत् । आ॒हुः॒ । भि॒षजा॑ । रु॒तस्य॑ । चि॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अमाजुरश्चिद्भवथो युवं भगोऽनाशोश्चिदवितारापमस्य चित् । अन्धस्य चिन्नासत्या कृशस्य चिद्युवामिदाहुर्भिषजा रुतस्य चित् ॥
स्वर रहित पद पाठअमाऽजुरः । चित् । भवथः । युवम् । भगः । अनाशोः । चित् । अवितारा । अपमस्य । चित् । अन्धस्य । चित् । नासत्या । कृशस्य । चित् । युवाम् । इत् । आहुः । भिषजा । रुतस्य । चित् ॥ १०.३९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 39; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
विषय - आचरण
शब्दार्थ -
(नासत्या) कभी असत्य भाषण और असत्याचरण न करनेवाले स्त्री-पुरुषो ! (युवम्) आप दोनों (अमाजर:) वृद्धावस्था तक, आजीवन सङ्गी बनकर (भगः) कल्याणप्रद (भवथः) साधक बनो । आप दोनों (अनाशो: चित्) भूखों के (अपमस्य चित्) निकृष्ट जघन्य, दीनजनों के, नीचों के (अन्धस्य चित्) अन्धों के (कृशस्य चित्) दुर्बल अशक्त के (अवितारा) रक्षक [भवथः] बनो । (युवाम् इत) आप दोनों को ही (रुतस्य चित्) रोग से पीड़ित मनुष्य का (भिषजा) चिकित्सा द्वारा कष्ट दूर करनेवाला (आहुः) कहते हैं ।
भावार्थ - वेद का आदेश है ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ - सारे संसार को आर्य बनाओ । प्रश्न यह है कि संसार आर्य बने कैसे ? धर्म-धर्म चिल्लाने से कोई आर्य नहीं बनता। आचरण को देखकर लोग प्रभावित होते हैं। गुणों की सुगन्धि मनुष्यों को अपनी ओर खींच लेती । वे कौन-से गुण हैं जिनसे लोग आपकी ओर आकर्षित हो सकते हैं ? वेद कहता है - १. हे स्त्री-पुरुषो ! तुम असत्यभाषण और असत्याचरण मत करो । जीवन-पर्यन्त कल्याणप्रद पथ के पथिक बने रहो और आप दोनों भूखों के रक्षक बनो, भूखों को भोजन दो । २. जो नीच हैं उनसे घृणा मत करो, उनकी भी रक्षा करो । ३. जो अन्धे हैं उनके सहायक बनो । ४. जो दुर्बल हैं उनकी रक्षा करो । ५. जो रोगी हैं उनकी चिकित्सा कराओ । मानवमात्र के सहायक और सेवक बनो। सेवा और प्रेम हृदय जीत लेता है। सेवा और प्रेम से प्रभावित होकर ही मनुष्य किसी धर्म को अपनाता है ।
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