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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 71/ मन्त्र 6
यस्ति॒त्याज॑ सचि॒विदं॒ सखा॑यं॒ न तस्य॑ वा॒च्यपि॑ भा॒गो अ॑स्ति । यदीं॑ शृ॒णोत्यल॑कं शृणोति न॒हि प्र॒वेद॑ सुकृ॒तस्य॒ पन्था॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठयः । ति॒त्याज॑ । स॒चि॒ऽविद॑म् । सखा॑यम् । न । तस्य॑ । वा॒चि । अपि॑ । भा॒गः । अ॒स्ति॒ । यत् । ई॒म् । शृ॒णोति॑ । अल॑कम् । शृ॒णो॒ति॒ । न॒हि । प्र॒ऽवेद॑ । सु॒ऽकृ॒तस्य॑ । पन्था॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्तित्याज सचिविदं सखायं न तस्य वाच्यपि भागो अस्ति । यदीं शृणोत्यलकं शृणोति नहि प्रवेद सुकृतस्य पन्थाम् ॥
स्वर रहित पद पाठयः । तित्याज । सचिऽविदम् । सखायम् । न । तस्य । वाचि । अपि । भागः । अस्ति । यत् । ईम् । शृणोति । अलकम् । शृणोति । नहि । प्रऽवेद । सुऽकृतस्य । पन्थाम् ॥ १०.७१.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 71; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
विषय - वेद को त्यागनेवाले का जीवन व्यर्थ
शब्दार्थ -
(य:) जो मनुष्य ( सचिविदम् ) सब प्रकार का ज्ञान करानेवाले (सखायम्) वेदरूपी मित्र को (तित्याज) छोड़ देता है, त्याग देता है (तस्य) उसकी (वाचि अपि) वाणी में भी (भाग:) कोई सार, तत्त्व (न, अस्ति) नहीं रहता (ईम्) वह व्यक्ति (यत्) वेद के अतिरिक्त जो कुछ (शृणोति) सुनता है (अलकम्) व्यर्थ ही सुनता है । ऐसा मनुष्य ( सुकृतस्य ) सुकृत के, पुण्य धर्म के, सुन्दर कर्मानुष्ठान के (पन्थाम् ) मार्ग को (न प्रवेद) नहीं जाता ।
भावार्थ - वेद हमारा जीवन धन है, वेद हमारा सर्वस्व है । अतः प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन वेद का स्वाध्याय करना चाहिए। क्योंकि- १. वेद सब प्रकार का ज्ञान प्राप्त कराता है । २. जो मनुष्य वेद को छोड़ देता है, वेद का स्वाध्याय नहीं करता उसकी वाणी में कोई सार और तत्त्व नहीं रहता । ३. ऐसा व्यक्ति जो कुछ सुनता है वह सब कुछ व्यर्थ ही होता है, उससे जीवन का निर्माण और उत्थान नहीं होता । ४. ऐसे व्यक्ति को अपने कर्तव्य कर्मों का बोध नहीं होता ।
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