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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 6 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 28
ऋषिः - वत्सः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराडार्षीगायत्री
स्वरः - षड्जः
उ॒प॒ह्व॒रे गि॑री॒णां सं॑ग॒थे च॑ न॒दीना॑म् । धि॒या विप्रो॑ अजायत ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒प॒ऽह्व॒रे । गि॒री॒णाम् । स॒म्ऽग॒थे । च॒ । न॒दीना॑म् । धि॒या । विप्रः॑ । अ॒जा॒य॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उपह्वरे गिरीणां संगथे च नदीनाम् । धिया विप्रो अजायत ॥
स्वर रहित पद पाठउपऽह्वरे । गिरीणाम् । सम्ऽगथे । च । नदीनाम् । धिया । विप्रः । अजायत ॥ ८.६.२८
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 28
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 3
विषय - उपासना का स्थान
शब्दार्थ -
(गिरीणाम् ) पर्वतों की ( उपह्वरे) गुहाओं, कन्दराओं में (च) और (नदीनाम्) नदियों के (सङ्गमे) सङ्गम स्थान पर (विप्रः) मेधावी जन (धिया) योगाभ्यास द्वारा (अजायत) ‘ईश्वर से’ युक्त होते हैं ।
भावार्थ - ध्यान कहाँ जाकर लगाना चाहिए ? १. पर्वत की गुफाओं और कन्दराओं में । ऐसे एकान्त, शान्त स्थान पर ध्यान बहुत शीघ्र लगता है । २. नदियों के सङ्गम स्थल पर । नदियों के सङ्गम भी नगर से दूर एकान्त में होते हैं। ऐसे स्थान पर ध्यान करने से मेधावी जन ईश्वर से युक्त होकर धारणा, ध्यान आदि द्वारा उसका साक्षात्कार कर लेते हैं । मन्त्र का योगपरक अर्थ - (गिरीणाम् ) हड्डियों की (उपह्वरे) गुहा में तथा ( नदीनाम्) नाड़ियों के (सङ्गमे) संगम-स्थान पर (घिया) ध्यान और योगाभ्यास से (विप्रः) ईश्वर (अजायत) प्रकट होता है । शुद्ध, पवित्र, एकान्त स्थान में बैठकर मनुष्यों को अपने शरीर में ध्यान लगाना चाहिए । परन्तु कहाँ ? १. हड्डियों की गुहा में । यह हड्डियों की कन्दरा कहाँ है ? हमारे शरीर में दोनों छातियाँ मानो दो पहाड़ हैं। उनके कुछ नीचे एक गढ़ा है। इसे ही हृदय-गुहा कहते हैं । यही ध्यान लगाने का स्थान है । २. नाड़ियों के सङ्गम पर । हमारे शरीर की तीन प्रमुख नाड़ियाँ इड़ा, पिङ्गला और सुषुम्णा दोनों भौहों के मध्य नासिका की जड़ में मस्तक में आकर मिलती हैं। योग की परिभाषा में इसे आज्ञाचक्र कहते हैं । यहाँ ध्यान लगाना चाहिए । इन स्थानों पर ध्यान लगाने से ईश्वर - दर्शन हो जाते हैं ।
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