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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 60 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 60/ मन्त्र 20
मा नो॒ रक्ष॒ आ वे॑शीदाघृणीवसो॒ मा या॒तुर्या॑तु॒माव॑ताम् । प॒रो॒ग॒व्यू॒त्यनि॑रा॒मप॒ क्षुध॒मग्ने॒ सेध॑ रक्ष॒स्विन॑: ॥
स्वर सहित पद पाठमा । नः॒ । रक्षः॑ । आ । वे॒शी॒त् । आ॒घृ॒णि॒व॒सो॒ इत्या॑घृणिऽवसो । मा । या॒तुः । या॒तु॒ऽमाव॑ताम् । प॒रः॒ऽग॒व्यू॒ति । अनि॑राम् । अप॑ । क्षुध॑म् । अग्ने॑ । सेध॑ । र॒क्ष॒स्विनः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मा नो रक्ष आ वेशीदाघृणीवसो मा यातुर्यातुमावताम् । परोगव्यूत्यनिरामप क्षुधमग्ने सेध रक्षस्विन: ॥
स्वर रहित पद पाठमा । नः । रक्षः । आ । वेशीत् । आघृणिवसो इत्याघृणिऽवसो । मा । यातुः । यातुऽमावताम् । परःऽगव्यूति । अनिराम् । अप । क्षुधम् । अग्ने । सेध । रक्षस्विनः ॥ ८.६०.२०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 60; मन्त्र » 20
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 35; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 35; मन्त्र » 5
विषय - (राजनीति खण्ड) हमारे नेता
शब्दार्थ -
(आघृणी-वसो अग्ने) हे दीप्तिधन नेता ! (नः) (रक्षः) राक्षस, नाशकारी, उपद्रवी (मा आवेशीत्) प्रवेश न करने (यातुमावताम्) पीड़ादायक दुष्ट रोगों और दुष्ट पुरुषों की (य) पीड़ा (नः) हममें प्रविष्ट न हो। (अनिराम्) दुर्बलता, दरिद्रता (क्षुधम्) भुखभरी को (रक्षस्विनः) दुष्ट राक्षसों को (पर: गव्यूति) कोसों दूर (अप सेध) मार भगा ।
भावार्थ - हमारे नेता कैसे होने चाहिएँ ? प्रस्तुत मन्त्र में आजकल के नेता के कुछ गुणों का वर्णन किया है । १. नेता ऐसे सजग और जागरूक होने चाहिए कि राक्षस और उपद्रवी लोग राष्ट्र में-नागरिकों में प्रवेश न कर सकें । २. दुष्ट रोग और दुष्ट पुरुष भी नागरिकों में प्रविष्ट न हो सकें । ३. नेता ऐसे होने चाहिएँ जो अकर्मण्यता और दरिद्रता को मार भगाएँ । ४. नेता को अपने राष्ट्र का प्रबन्ध इस रीति से करना चाहिए कि कहीं भुखमरी न हो, लोग अभावग्रस्त न हों। जीवन के लिए उपयोगी और आवश्यक सभी वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों। ५. नेता ऐसे होने चाहिएँ जो देश पर आक्रमण करनेवाले शत्रुओं को कोसों दूर मार भगाएँ ।
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