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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 68 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 68/ मन्त्र 1
आ त्वा॒ रथं॒ यथो॒तये॑ सु॒म्नाय॑ वर्तयामसि । तु॒वि॒कू॒र्मिमृ॑ती॒षह॒मिन्द्र॒ शवि॑ष्ठ॒ सत्प॑ते ॥
स्वर सहित पद पाठआ । त्वा॒ । रथ॑म् । यथा॑ । ऊ॒तये॑ । सु॒म्नाय॑ । व॒र्त॒या॒म॒सि॒ । तु॒वि॒ऽकू॒र्मिम् । ऋ॒ति॒ऽसह॑म् । इन्द्र॑ । शवि॑ष्ठ । सत्ऽप॑ते ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ त्वा रथं यथोतये सुम्नाय वर्तयामसि । तुविकूर्मिमृतीषहमिन्द्र शविष्ठ सत्पते ॥
स्वर रहित पद पाठआ । त्वा । रथम् । यथा । ऊतये । सुम्नाय । वर्तयामसि । तुविऽकूर्मिम् । ऋतिऽसहम् । इन्द्र । शविष्ठ । सत्ऽपते ॥ ८.६८.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 68; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
विषय - पुत्र
शब्दार्थ -
(इन्दो) हे तेजस्विन् ! तू (न:) हमें (वाजसातमम्) अन्न देनेवाला (सहस्र भर्णसम्) सहस्रों के पालन-पोषण में समर्थ (पुरुस्पृहम् ) बहुतों को अच्छा लगनेवाला (तुविद्युम्नम्) अत्यधिक यशस्वी (विभ्वासहम्) बड़े-बड़ों का भी पराभव करनेवाला (रयिम्) पुत्र (अभि अर्ष) प्रदान कर ।
भावार्थ - कोई भक्त प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहता है - प्रभो ! हमें ऐसा पुत्र दे - १. जो अन्न देनेवाला हो । जिसके घर से कोई भूखा न जाए । २. पुत्र अन्न देनेवाला तो हो परन्तु दो-चार को नहीं वह सहस्रों का भरण पोषण करने की क्षमता से युक्त हो । ३. वह बहुतों को अच्छा लगनेवाला हो । वह क्रूर स्वभाव का न होकर सौम्य स्वभाव का हो । ४. उसका यश दूर-दूर तक फैला हुआ हो । ५. वह समय पड़ने पर बड़े-बड़ों का भी पराभव करानेवाला हो । वह सत्य के लिए मर मिटनेवाला हो । ‘रयि’ का धन अर्थ लेने पर मन्त्र का भाव होगा १. मेरा धन भूखों के लिए अन्न देनेवाला हो । २. मेरे पास इतना धन हो कि दो-चार का नहीं मैं सहस्रों और लाखों का भरण-पोषण कर सकूँ । ३. मेरा धन ऐसे कार्यों में लगे जो मेरी कीर्ति बढ़ानेवाले हों । ४. मेरा धन ऐसा हो जिसे पाकर मैं आलसी और निर्बल न बनूं अपितु समय आने पर मैं बड़े-बड़ों का पराभव करने के लिए तैयार रहूँ ।
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