साइडबार
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 98 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 98/ मन्त्र 1
ऋषिः - अम्बरीष ऋजिष्वा च
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अ॒भि नो॑ वाज॒सात॑मं र॒यिम॑र्ष पुरु॒स्पृह॑म् । इन्दो॑ स॒हस्र॑भर्णसं तुविद्यु॒म्नं वि॑भ्वा॒सह॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । नः॒ । वा॒ज॒ऽसात॑मम् । र॒यिम् । अ॒र्ष॒ । पु॒रु॒ऽस्पृह॑म् । इन्दो॒ इति॑ । स॒हस्र॑ऽभर्णसम् । तु॒वि॒ऽद्यु॒म्नम् । वि॒भ्व॒ऽसह॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि नो वाजसातमं रयिमर्ष पुरुस्पृहम् । इन्दो सहस्रभर्णसं तुविद्युम्नं विभ्वासहम् ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । नः । वाजऽसातमम् । रयिम् । अर्ष । पुरुऽस्पृहम् । इन्दो इति । सहस्रऽभर्णसम् । तुविऽद्युम्नम् । विभ्वऽसहम् ॥ ९.९८.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 98; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
विषय - परमात्मा को प्राप्त कर
शब्दार्थ -
(इन्दो) हे जीवात्मन् ! तू परमेश्वर को (अभि अर्ष) प्राप्त कर जो (नः) हमें (वाजसातमम्) अन्न, ज्ञान और बल का प्रदाता है (शतस्पृहम्) जिसकी सभी भव्यात्मा स्पृहा करते हैं, जिसे सभी व्यक्ति चाहते हैं (रयिम्) जो मोक्ष-धन का प्रदाता है । (सहस्रभर्णसम्) जो सबका भरण-पोषण और रक्षण करनेवाला है। (तुविद्युम्नम्) जिसका ऐश्वर्य और कीर्ति अपार है (विभासहम्) जो बड़ों-बड़ों का भी पराभव करनेवाला है ।
भावार्थ - संसार के प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए । ईश्वर के स्थान पर हम मनुष्यपूजा अथवा मूर्तिपूजा आदि में न लग जाएँ; अतः वेद ने कुछ विशेषण दे दिये कि कैसे ईश्वर को प्राप्त करना चाहिए । हम ऐसे ईश्वर को प्राप्त करें, ऐसे ईश्वर के उपासक बनें- १. जो हमें अन्न, ज्ञान और बल प्रदान करता है । २. हम ऐसे ईश्वर की स्पृहा करें जिसकी भव्यात्मा योगीजन उपासना करते हैं । ३. हम ऐसे ईश्वर की उपासना करें जो हमें मोक्षधन प्रदान कर सकता हो । ४. जो सबका भरण, पोषण और रक्षण करनेवाला है । ५. जिसका ऐश्वर्य अपार है और कीर्ति महान् है । ६. जो छोटे-मोटों की तो बात ही क्या, बड़ों-बड़ों का भी पराभव करनेवाला है ।
इस भाष्य को एडिट करें