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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1199
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
1

दि꣣वो꣡ नाभा꣢꣯ विचक्ष꣣णो꣢ऽव्या꣣ वा꣡रे꣢ महीयते । सो꣢मो꣣ यः꣢ सु꣣क्र꣡तुः꣢ क꣣विः꣢ ॥११९९॥

स्वर सहित पद पाठ

दि꣣वः꣢ । ना꣡भा꣢꣯ । वि꣣चक्षणः꣢ । वि꣣ । चक्षणः꣢ । अ꣡व्याः꣢꣯ । वा꣡रे꣢꣯ । म꣣हीयते । सो꣡मः꣢꣯ । यः । सु꣣क्र꣡तुः꣢ । सु꣣ । क्र꣡तुः꣢꣯ । क꣣विः꣢ ॥११९९॥


स्वर रहित मन्त्र

दिवो नाभा विचक्षणोऽव्या वारे महीयते । सोमो यः सुक्रतुः कविः ॥११९९॥


स्वर रहित पद पाठ

दिवः । नाभा । विचक्षणः । वि । चक्षणः । अव्याः । वारे । महीयते । सोमः । यः । सुक्रतुः । सु । क्रतुः । कविः ॥११९९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1199
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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शब्दार्थ -
(य: ) जो व्यक्ति, उपासक (ऋषिभिः) ऋषियों द्वारा (सम्, भृतम्) धारण की गई (पावमानी:) अन्तकरण को पवित्र करनेवाली (रसम्) वेद की ज्ञानमयी ऋचाओं का (अध्येति) अध्ययन करता है (सरस्वती) वेदवाणी (तस्मै ) उस मनुष्य के लिए (क्षीरम्) दूध, (सर्पि:) घी (मधु उदकम् ) मधुर जल, शरबत आदि (दुहे) प्रदान करती है ।

भावार्थ - वेदाध्ययन से क्या मिलता है ? मन्त्र में वेदाध्ययन से मिलनेवाले फलों का सुन्दर वर्णन है । वेद के अध्ययन और उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य के जीवन-निर्वाह के लिए सभी उपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति होती है । जो व्यक्ति वेद का स्वाध्याय करते हैं उन्हें दूध और घी आदि शरीर के पोषक तत्त्वों की कमी नहीं रहती । वैदिक विद्वान् जहाँ जाते हैं वहीं घी, दुग्ध और शर्बत आदि से उनका स्वागत और सत्कार होता है। जीवन की आवश्यकताओं की प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को वेद का अध्ययन करना चाहिए ।

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