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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 10
ऋषिः - वामदेवः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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अ꣢ग्ने꣣ वि꣡व꣢स्व꣣दा꣡ भ꣢रा꣣स्म꣡भ्य꣢मू꣣त꣡ये꣢ म꣣हे꣢ । दे꣣वो꣡ ह्यसि꣢꣯ नो दृ꣣शे꣢ ॥१०
स्वर सहित पद पाठअ꣡ग्ने꣢꣯ । वि꣡व꣢꣯स्वत् । वि । व꣣स्वत् । आ꣢ । भ꣣र । अस्म꣡भ्य꣢म् । ऊ꣣त꣡ये꣢ । म꣣हे꣢ । दे꣣वः꣢ । हि । अ꣡सि꣢꣯ । नः꣢ । दृशे꣢ ॥१०॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने विवस्वदा भरास्मभ्यमूतये महे । देवो ह्यसि नो दृशे ॥१०
स्वर रहित पद पाठ
अग्ने । विवस्वत् । वि । वस्वत् । आ । भर । अस्मभ्यम् । ऊतये । महे । देवः । हि । असि । नः । दृशे ॥१०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 10
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1;
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Bhajan -
आज का वैदिक भजन 🙏 1153
ओ३म् अ꣢ग्ने꣣ वि꣡व꣢स्व꣣दा꣡ भ꣢रा꣣स्म꣡भ्य꣢मू꣣त꣡ये꣢ म꣣हे꣢ ।
दे꣣वो꣡ ह्यसि꣢꣯ नो दृ꣣शे꣢ ॥१०
सामवेद 10
एक ही देव हमारे
देदीप्यमान् !
सब पाते ज्योति तुझसे
इतना तू महान्
तेरे दर्शन के हेतु
मिलती सुतर-संतृप्ति
अन्धकार दूर कराता
आत्मा को देता शक्ति
भक्तों को देता तू ही
मोक्ष का धाम
सब पाते ज्योति तुझसे
इतना तू महान्
दुष्टाचरण से प्रभु
सतत् मुझको बचा
उत्तमाचरण में निशदिन
देके आशीष, चला
सीख के मैं तुझसे
करूँ कर्म निष्काम
कृत पर ना आए
कभी अभिमान
सब पाते ज्योति तुझसे
इतना तू महान्
हे दिव्य देव! तुझको
क्यों छोड़ दें भला?
बिना तेरे सङ्ग हमको
चैन आएगा कहाँ ?
शब्द स्पर्श रूप रस,
गंध तुझमें आधान
सब पाते ज्योति तुझसे
इतना तू महान्
एक ही देव हमारे
देदीप्यमान् !
सब पाते ज्योति तुझसे
इतना तू महान्
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :-- १५.६.२०२१ २.०० दोपहर
राग :- खमाज
गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर, ताल कहरवा 8 मात्रा
शीर्षक :- देदीप्यमान प्रभो ! भजन ७३० वां
*तर्ज :- *
00139-739-00140
सुतर = सुख से पार होने वाली
संतृप्ति = पूर्ण संतोष
आधान = अग्नि का स्थापन, रखना
कृत = क्या हुआ
Vyakhya -
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
देदीप्यमान प्रभो !
हे देदीप्यमान प्रभो! हमारे साक्षात्कार करने के लिए एकमात्र दर्शनीय देव तू ही है। तेरे दर्शन के परिणाम स्वरूप जो महती तृप्ति मिलती है, जो महान आनन्द मिलता है, उसी महती तृप्ति, उसी महान मोक्ष-आनन्द की प्राप्ति के लिए हमें वह ज्ञान प्रदान कर जो हमारे उन सर्वविध अविद्या अधिकारों को हम से पृथक कर दें, जिसके कारण कि हम आपका साक्षात्कार करने और महान आनन्द पाने से वंचित हो रहे हैं।
प्रभु देव! हमें वह अनुपम ज्योति अवश्य प्रदान करो जिससे हम आपके दर्शन पा सकें क्योंकि हमारे लिए दर्शनीय देव एकमात्र आप ही हैं।
हे अग्नि! हे ज्ञान स्वरूप जगदीश्वर! तेरा नाम ओ३म् है।
तू सदा सर्वत्र सहज स्वभाव से अपनीअन हेतु की कृपा से हमारी रक्षा करता है, परंतु इसके अतिरिक्त भी मैंने जब कभी हृदय की टीस के साथ प्रार्थना की, कि मुझे, निकृष्ट आचरण से बचा और मुझे उत्तम आचरण में लगा, तो निसंदेह मैं अंतकरण से कृतज्ञता पूर्वक अनुभव करता हूं कि तूने मुझे दुष्ट आचरण से बचाने और उत्तम आचरण में स्थिर करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। और मुझे उत्तम ज्योति के दर्शन कराने में सहायता की। मैंने शब्द स्पर्श रूप रस गन्धवाली इंद्रियों को तुझमें आधान किया हुआ है। समर्पित किया हुआ है। जिसकी आप रक्षा कर रहे हैं।
ऐसे उस महान अग्निदेव ज्योति प्रदान करने वाले परमपिता परमात्मा को कैसे छोड़ सकता हूं जो कदम कदम पर हमारी सहायता कर रहे हैं हमें पापों से बचाकर सत्कर्मों में लगा रहे हैं। तुम्हारा संग नहीं रहेगा तो भला हम चैन से किस प्रकार रह सकते हैं। जो प्रकाश तुझमें है उसके आगे सूर्य का प्रकाश भी हेय सिद्ध होता है। बौना लगता है।
हमें वह आनन्द नहीं मिला कि जिसके उपरांत आत्मा ऐसी विभोर हो जाए,ऐसी तृप्त हो जाए, कि फिर उसको कुछ और अपेक्षित ना रहे।
हे दिव्य देव ! तुझको पाकर फिलहाल फिर हमारे लिए और क्या प्राप्तव्य रह जाएगा।
तुझको देख कर भला फिर हमारे लिए क्या दृष्टव्य रह जाएगा, तेरा स्पर्श पाकर भला फिर हमारे लिए और क्या स्पृष्टव्य रह जाएगा तुझसे साक्षात श्रवण करके भला फिर हमारे लिए और क्या श्रोतव्य रह जाएगा तेरा रसास्वाद पाकर भला फिर हमारे लिए क्या और आस्वाद्य जाएगा अर्थात् कुछ भी नहीं। अतः हे प्राणों से प्यारे प्रभु देव! उस अनुपम तृप्ति को, आनन्द को, प्रसाद को, अखंड सुख संपत्ति को, पाने के लिए हमें तुझे देवाधि देव परम देव! ज्योतिर्मय देव! की अपेक्षा है।
उस के परिज्ञान के लिए उसकी अनुभूति के लिए हमें दिव्य ज्ञान का आलोक प्रदान कर, यही आपसे विनती है यही आपसे प्रार्थना है, यही आपसे याचना है, स्वीकार करो और हम सब का सर्वविध कल्याण करो।
🕉🧘♂️ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा🙏
🕉🧘♂️वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं❗