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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 2/ मन्त्र 8
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ऋ॒तेन॑ मित्रावरुणावृतावृधावृतस्पृशा। क्रतुं॑ बृ॒हन्त॑माशाथे॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒तेन॑ । मि॒त्रा॒व॒रु॒णौ॒ । ऋ॒ता॒ऽवृ॒धौ॒ । ऋ॒त॒ऽस्पृ॒शा॒ । क्रतु॑म् । बृ॒हन्त॑म् । आ॒शा॒थे॒ इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतेन मित्रावरुणावृतावृधावृतस्पृशा। क्रतुं बृहन्तमाशाथे॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतेन। मित्रावरुणौ। ऋताऽवृधौ। ऋतऽस्पृशा। क्रतुम्। बृहन्तम्। आशाथे इति॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 8
    अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 3

    Meaning -
    By virtue of the divine law, Mitra and Varuna, sun and pranic energy, both extend the operation of the natural law of cosmic evolution and inspire the human intelligence to reach unto divine realisation. They both pervade and energize the mighty yajna of the expanding universe.

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