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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 41 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 41/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - वायु: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    वायो॒ ये ते॑ सह॒स्रिणो॒ रथा॑स॒स्तेभि॒रा ग॑हि। नि॒युत्वा॒न्त्सोम॑पीतये॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वायो॒ इति॑ । ये । ते॒ । स॒ह॒स्रिणः॑ । रथा॑सः । तेभिः॑ । आ । ग॒हि॒ । नि॒युत्वा॑न् । सोम॑ऽपीतये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायो ये ते सहस्रिणो रथासस्तेभिरा गहि। नियुत्वान्त्सोमपीतये॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वायो इति। ये। ते। सहस्रिणः। रथासः। तेभिः। आ। गहि। नियुत्वान्। सोमऽपीतये॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 41; मन्त्र » 1
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 1

    Meaning -
    Vayu, tempestuous power of divine nature, intelligence of the learned, commanding a thousand chariots and laws of motion, come with all those powers and laws to drink of the soma of life’s joy.

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