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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    विश्वे॑ च॒नेद॒ना त्वा॑ दे॒वास॑ इन्द्र युयुधुः। यदहा॒ नक्त॒माति॑रः ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑ । च॒न । इत् । अ॒ना । त्वा॒ । दे॒वासः॑ । इ॒न्द्र॒ । यु॒यु॒धुः॒ । यत् । अहा॑ । नक्त॑म् । आ । अति॑रः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वे चनेदना त्वा देवास इन्द्र युयुधुः। यदहा नक्तमातिरः ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वे। चन। इत्। अना। त्वा। देवासः। इन्द्र। युयुधुः। यत्। अहा। नक्तम्। आ। अतिरः ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 3
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 3

    Meaning -
    Indra, lord ruler of the world, all the nobilities of humanity and divinities of nature, with all their wisdom and resolution, relentlessly fight for you day and night so that you are always victorious over the enmities and negativities of life.

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