ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
स सद्म॒ परि॑ णीयते॒ होता॑ म॒न्द्रो दिवि॑ष्टिषु। उ॒त पोता॒ नि षी॑दति ॥३॥
स्वर सहित पद पाठसः । सद्म॑ । परि॑ । नी॒य॒ते॒ । होता॑ । म॒न्द्रः । दिवि॑ष्टिषु । उ॒त । पोता॑ । नि । सी॒द॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स सद्म परि णीयते होता मन्द्रो दिविष्टिषु। उत पोता नि षीदति ॥३॥
स्वर रहित पद पाठसः। सद्म। परि। नीयते। होता। मन्द्रः। दिविष्टिषु। उत। पोता। नि। सीदति॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
Meaning -
3. That light and power, Agni, sacrificing, sanctifying, happy and rejoicing, is investigated, discovered and worshipped in all holy programmes of life, and everywhere in yajnic homes where it sits as the prime and central presence.