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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 14/ मन्त्र 3
    ऋषिः - सुतम्भर आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तं हि शश्व॑न्त॒ ईळ॑ते स्रु॒चा दे॒वं घृ॑त॒श्चुता॑। अ॒ग्निं ह॒व्याय॒ वोळ्ह॑वे ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । हि । शश्व॑न्तः । ईळ॑ते । स्रु॒चा । दे॒वम् । घृ॒त॒ऽश्चुता॑ । अ॒ग्निम् । ह॒व्याय॑ । वोळ्ह॑वे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं हि शश्वन्त ईळते स्रुचा देवं घृतश्चुता। अग्निं हव्याय वोळ्हवे ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। हि। शश्वन्तः। ईळते। स्रुचा। देवम्। घृतऽश्चुता। अग्निम्। हव्याय। वोळ्हवे ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 3

    Meaning -
    Agni, that divine refulgent generous power, the humans, immortal souls, with ladles dripping with ghrta, sprinkle, serve and worship so that it may carry their offerings across the spaces and bring them the sweets of yajna.

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