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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 26/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसुयव आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    तं त्वा॑ घृतस्नवीमहे॒ चित्र॑भानो स्व॒र्दृश॑म्। दे॒वाँ आ वी॒तये॑ वह ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । त्वा॒ । घृ॒त॒स्नो॒ इति॑ घृतऽस्नो । ई॒म॒हे॒ । चित्र॑भानो॒ इति॒ चित्र॑ऽभानो । स्वः॒ऽदृश॑म् । दे॒वान् । आ । वी॒तये॑ । व॒ह॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं त्वा घृतस्नवीमहे चित्रभानो स्वर्दृशम्। देवाँ आ वीतये वह ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। त्वा। घृतस्नो इति घृतऽस्नो। ईमहे। चित्रभानो इति चित्रऽभानो। स्वःऽदृशम्। देवान्। आ। वीतये। वह ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 2

    Meaning -
    Agni, pure and purifier, light of fire feeding on ghrta, showerer of life’s beauty and grace, shining with manifold lustre, indeed the very light and bliss of heaven, we pray: With a sweet and lustrous tongue of flame full of bliss, bring for us the nobilities and divinities of nature and humanity for a feast of pleasure and enlightenment and serve them with love and reverence.

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