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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 72 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 72/ मन्त्र 2
    ऋषिः - बाहुवृक्त आत्रेयः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    व्र॒तेन॑ स्थो ध्रु॒वक्षे॑मा॒ धर्म॑णा यात॒यज्ज॑ना। नि ब॒र्हिषि॑ सदतं॒ सोम॑पीतये ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व्र॒तेन॑ । स्थः॒ । ध्रु॒वऽक्षे॑मा । धर्म॑णा । या॒त॒यत्ऽज॑ना । नि । ब॒र्हिषि॑ । स॒द॒त॒म् । सोम॑ऽपीतये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    व्रतेन स्थो ध्रुवक्षेमा धर्मणा यातयज्जना। नि बर्हिषि सदतं सोमपीतये ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    व्रतेन। स्थः। ध्रुवऽक्षेमा। धर्मणा। यातयत्ऽजना। नि। बर्हिषि। सदतम्। सोमऽपीतये ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 72; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 2

    Meaning -
    O constant protectors of achievement and progress, unshakable leaders dynamic at the centre of movement, dedicated to the vows of piety, guides of the people on the march forward and onward by the laws of Dharma, come, grace the seats of yajna in the world order and drink the soma of success and advancement.

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