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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 15/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स्पा॒र्हा यस्य॒ श्रियो॑ दृ॒शे र॒यिर्वी॒रव॑तो यथा। अग्रे॑ य॒ज्ञस्य॒ शोच॑तः ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्पा॒र्हा । यस्य॑ । श्रियः॑ । दृ॒शे । र॒यिः । वी॒रऽव॑तः । य॒था॒ । अग्रे॑ । य॒ज्ञस्य॑ । शोच॑तः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्पार्हा यस्य श्रियो दृशे रयिर्वीरवतो यथा। अग्रे यज्ञस्य शोचतः ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्पार्हा। यस्य। श्रियः। दृशे। रयिः। वीरऽवतः। यथा। अग्रे। यज्ञस्य। शोचतः ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 15; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 5

    Meaning -
    Like the wealth, honour and magnificence of a chief of heroic brave, the flaming splendour of Agni is glorious to the sight when it shines first and foremost of the graces of yajna.

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