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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 15/ मन्त्र 13
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    अरं॒ क्षया॑य नो म॒हे विश्वा॑ रू॒पाण्या॑वि॒शन् । इन्द्रं॒ जैत्रा॑य हर्षया॒ शची॒पति॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अर॒म् । क्षया॑य । नः॒ । म॒हे । विश्वा॑ । रू॒पाणि॑ । आ॒ऽवि॒शन् । इन्द्र॑म् । जैत्रा॑य । ह॒र्ष॒य॒ । श॒ची॒ऽपति॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अरं क्षयाय नो महे विश्वा रूपाण्याविशन् । इन्द्रं जैत्राय हर्षया शचीपतिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अरम् । क्षयाय । नः । महे । विश्वा । रूपाणि । आऽविशन् । इन्द्रम् । जैत्राय । हर्षय । शची३ऽपतिम् ॥ ८.१५.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 15; मन्त्र » 13
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 3

    Meaning -
    For peace and settlement of the perfect order, and for honour, dignity and excellence for all of us here on earth, and for our final victory of self fulfilment in ultimate bliss, meditate on the lord’s manifestations, identify with his omnipresence, adore him as the lord of omnipotence, and win the pleasure and grace of Indra.

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