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  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 24
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - सूर्यो देवता छन्दः - भुरिग् ब्राह्मी स्वरः - धैवतः
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    तच्चक्षु॑र्दे॒वहि॑तं पु॒रस्ता॑च्छु॒क्रमुच्च॑रत्। पश्ये॑म श॒रदः॑ श॒तं जीवे॑म श॒रदः॑ श॒तꣳ शृणु॑याम श॒रदः॑ श॒तं प्र ब्र॑वाम श॒रदः॑ श॒तमदी॑नाः स्याम श॒रदः॑ श॒तं भूय॑श्च श॒रदः॑ श॒तात्॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत्। चक्षुः॑। दे॒वहि॑त॒मिति॑ दे॒वऽहि॑तम्। पु॒रस्ता॑त्। शु॒क्रम्। उत्। च॒र॒त्। पश्ये॑म। श॒रदः॑। श॒तम्। जीवे॑म। श॒रदः॑। श॒तम्। शृणु॑याम। श॒रदः॑। श॒तम्। प्र। ब्र॒वा॒म॒। श॒रदः॑। श॑तम्। अदी॑नाः। स्या॒म॒। श॒रदः॑। श॒तम्। भूयः॑। च॒। श॒रदः॑। श॒तात् ॥२४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तच्चक्षुर्देवहितम्पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् । पश्येम शरदः शतञ्जीवेम शरदः शतँ शृणुयाम शरदः शतम्प्र ब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतम्भूयश्च शरदः शतात् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तत्। चक्षुः। देवहितमिति देवऽहितम्। पुरस्तात्। शुक्रम्। उत्। चरत्। पश्येम। शरदः। शतम्। जीवेम। शरदः। शतम्। शृणुयाम। शरदः। शतम्। प्र। ब्रवाम। शरदः। शतम्। अदीनाः। स्याम। शरदः। शतम्। भूयः। च। शरदः। शतात्॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 24
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    मन्त्रार्थ -
    (देवहितं तत्-शुक्रं चतुः पुरस्तात्-उच्चरत्) विद्वानों के हितकर वह शुभ्र ब्रह्म ज्योति सृष्टि के पूर्व से वर्तमान मेरे मन में प्रकाशित हुआ-हो रहा है या सूर्य ज्योति पूर्व दिशा से उदय हुआ होता है (शतं शरदः पश्येम) सौ शरद ऋतुओं-वर्षो तक उस ब्रह्म ज्योति को देखें अध्यात्म दृष्टि से या सूर्य ज्योति को नेत्रदृष्टि से देखें (शतं शरदः-जीवेम)उसे देखते हुए सौ वर्षों तक जीवें (शतं शरद:-शृणुयाम) सौ वर्षों तक सुनें (शतं शरदः प्रब्रवाम) सौ वर्षों तक प्रकृष्ट बोलें-प्रवचन करें (शतं शरद:-अदीनाः स्याम) सौ वर्षो तक दीनतारहित हों-रहें (शतात्-शरदः-भूयः) सौ वर्षों से भी अधिक वैसे ही देखते हुए प्राणों को धारण करते हुए सुनते हुए बोलते हुए दीनतारहित होते हुए रहें ॥२४॥

    विशेष - ऋषिः—दध्यङङाथर्वणः (ध्यानशील स्थिर मन बाला) १, २, ७-१२, १७-१९, २१-२४ । विश्वामित्र: (सर्वमित्र) ३ वामदेव: (भजनीय देव) ४-६। मेधातिथिः (मेधा से प्रगतिकर्ता) १३। सिन्धुद्वीप: (स्यन्दनशील प्रवाहों के मध्य में द्वीप वाला अर्थात् विषयधारा और अध्यात्मधारा के बीच में वर्तमान जन) १४-१६। लोपामुद्रा (विवाह-योग्य अक्षतयोनि सुन्दरी एवं ब्रह्मचारिणी)२०। देवता-अग्निः १, २०। बृहस्पतिः २। सविता ३। इन्द्र ४-८ मित्रादयो लिङ्गोक्ताः ९। वातादयः ९० । लिङ्गोक्ताः ११। आपः १२, १४-१६। पृथिवी १३। ईश्वरः १७-१९, २१,२२। सोमः २३। सूर्यः २४ ॥

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