Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 53
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    10

    स॒म्प्रच्य॑वध्व॒मुप॑ सं॒प्रया॒ताग्ने॑ पथो॒ दे॑व॒याना॑न् कृणुध्वम्। पुनः॑ कृण्वा॒ना पि॒तरा॒ युवा॑ना॒न्वाता॑सी॒त् त्वयि॒ तन्तु॑मे॒तम्॥५३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्प्रच्य॑वध्व॒मिति॑ स॒म्ऽप्रच्य॑वध्वम्। उप। स॒म्प्रया॒तेति॑ स॒म्ऽप्रया॑त। अग्ने॑। प॒थः। दे॒व॒याना॒निति॑ देव॒ऽयाना॑न्। कृ॒णु॒ध्व॒म्। पुन॒रिति॒ पुनः॑। कृ॒ण्वा॒ना। पि॒तरा॑। युवा॑ना। अ॒न्वाता॑सी॒दित्य॑नुऽआता॑सीत्। त्वयि॑। तन्तु॑म। ए॒तम् ॥५३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सम्प्रच्यवध्वमुप सम्प्र याताग्ने पथो देवयानान्कृणुध्वम् । पुनः कृण्वाना पितरा युवानान्वाताँसीत्त्वयि तन्तुमेतम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम्प्रच्यवध्वमिति सम्ऽप्रच्यवध्वम्। उप। सम्प्रयातेति सम्ऽप्रयात। अग्ने। पथः। देवयानानिति देवऽयानान्। कृणुध्वम्। पुनरिति पुनः। कृण्वाना। पितरा। युवाना। अन्वातासीदित्यनुऽआतासीत्। त्वयि। तन्तुम। एतम्॥५३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 53
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! तुम लोग विद्याओं को (उपसंप्रयात) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ (देवयानान्) धार्मिकों के (पथः) मार्गों से (संप्रच्यवध्वम्) सम्यक् चलो, धर्म को (कृणुध्वम्) करो। हे (अग्ने) विद्वान् पितामह! (त्वयि) तुम्हारे बने रहते ही (पितरा) रक्षा करने वाले माता-पिता तुम्हारे पुत्र आदि ब्रह्मचर्य्य को (कृण्वाना) करते हुए (युवाना) पूर्ण युवावस्था को प्राप्त हो और स्वयंवर विवाह कर (पुनः) पश्चात् (एतम्) गर्भाधानादिरीति से यथोक्त (तन्तुम्) सन्तान को (अन्वातांसीत्) अनुकूल उत्पन्न करें॥५३॥

    भावार्थ - कुमार स्त्रीपुरुष धर्मयुक्त सेवन किये ब्रह्मचर्य्य से पूर्ण विद्या पढ़ आप धार्मिक हो पूर्ण युवावस्था की प्राप्ति में कन्याओं की पुरुष और पुरुषों की कन्या परीक्षा कर अत्यन्त प्रीति के साथ चित्त से परस्पर आकर्षित होके अपनी इच्छा से विवाह कर, धर्मानुकूल सन्तानों को उत्पन्न और सेवा से अपने माता पिता का संतोष कर के आप्त विद्वानों के मार्ग से निरन्तर चलें और जैसे धर्म के मार्गों को सरल करें, वैसे ही भूमि, जल और अन्तरिक्ष के मार्गों को भी बनावें॥५३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top