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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 2
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृद्विकृतिः स्वरः - मध्यमः
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    इ॒मा मे॑ऽअग्न॒ऽइष्ट॑का धे॒नवः॑ स॒न्त्वेका॑ च॒ दश॑ च॒ दश॑ च श॒तं च॑ श॒तं च॑ स॒हस्रं॑ च स॒हस्रं॑ चा॒युतं॑ चा॒युतं॑ च नि॒युतं॑ च नि॒युतं॑ च प्र॒युतं॒ चार्बु॑दं च॒ न्यर्बुदं च समु॒द्रश्च॒ मध्यं॒ चान्त॑श्च परा॒र्द्धश्चै॒ता मे॑ऽअग्न॒ऽइष्ट॑का धे॒नवः॑ सन्त्व॒मु॒त्रा॒मुष्मिँ॑ल्लो॒के॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒माः। मे॒। अ॒ग्ने॒। इष्ट॑काः। धेनवः॑। स॒न्तु॒। एका॑। च॒। दश॑। च॒। दश॑। च॒। श॒तम्। च॒। श॒तम्। च॒। स॒हस्र॑म्। च॒। स॒हस्र॑म्। च॒। अ॒युत॑म्। च॒। अ॒युत॑म्। च॒। नि॒युत॒मिति॑ नि॒ऽयुत॑म्। च॒। नि॒युत॒मिति॑ नि॒ऽयुत॑म्। च॒। प्र॒युत॒मिति॑ प्र॒ऽयुत॑म्। च॒। अर्बु॑दम्। च॒। न्य॑र्बुद॒मिति॒ निऽअ॑र्बुदम्। च॒। स॒मु॒द्रः। च॒। मध्य॑म्। च॒। अन्तः॑। च॒। प॒रा॒र्द्धः। च॒। ए॒ताः। मे॒। अ॒ग्ने॒। इष्ट॑काः। धे॒नवः॑। स॒न्तु॒। अ॒मुत्र॑। अमुष्मि॑न्। लो॒के ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा मेऽअग्नऽइष्टका धेनवः सन्त्वेका च दश च दश च शतञ्च शतञ्च सहस्रञ्च सहस्रञ्चायुतञ्चायुतञ्च नियुतञ्च नियुतञ्च प्रयुतञ्चार्बुदञ्च न्यर्बुदञ्च समुद्रश्च मध्यञ्चान्तश्च परार्धश्चौता मेऽअग्नऽइष्टका धेनवः सन्त्वमुत्रामुष्मिँल्लोके ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इमाः। मे। अग्ने। इष्टकाः। धेनवः। सन्तु। एका। च। दश। च। दश। च। शतम्। च। शतम्। च। सहस्रम्। च। सहस्रम्। च। अयुतम्। च। अयुतम्। च। नियुतमिति निऽयुतम्। च। नियुतमिति निऽयुतम्। च। प्रयुतमिति प्रऽयुतम्। च। अर्बुदम्। च। न्यर्बुदमिति निऽअर्बुदम्। च। समुद्रः। च। मध्यम्। च। अन्तः। च। परार्द्धः। च। एताः। मे। अग्ने। इष्टकाः। धेनवः। सन्तु। अमुत्र। अमुष्मिन्। लोके॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 2
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    पदार्थ -
    हे (अग्ने) विद्वन्! जैसे (मे) मेरी (इमाः) ये (इष्टकाः) इष्ट सुख को सिद्ध करनेहारी यज्ञ की सामग्री (धेनवः) दुग्ध देने वाली गौओं के समान (सन्तु) होवें, आप के लिये भी वैसी हों। जो (एका) एक (च) दशगुणा (दश) दश (च) और (दश) दश (च) दश गुणा (शतम्) सौ (च) और (शतम्) सौ (च) दशगुणा (सहस्रम्) हजार (च) और (सहस्रम्) हजार (च) दश गुणा (अयुतम्) दश हजार (च) और (अयुतम्) दश हजार (च) दश गुणा (नियुतम्) लाख (च) और (नियुतम्) लाख (च) दश गुणा (प्रयुतम्) दश लाख (च) इसका दश गुणा क्रोड़, इसका दश गुणा (अर्बुदम्) दशक्रोड़ इस का दश गुणा (न्यर्बुदम्) अर्ब (च) इसका दश गुणा खर्ब, इसका दश गुणा निखर्ब, इसका दश गुणा महापद्म, इसका दश गुणा शङ्कु, इसका दश गुणा (समुद्रः) समुद्र (च) इसका दश गुणा (मध्यम्) मध्य (च) इसका दश गुणा (अन्तः) अन्त और (च) इसका दश गुणा (परार्द्धः) परार्द्ध (एताः) ये (मे) मेरी (अग्ने) हे विद्वन्! (इष्टकाः) वेदी की र्इंटें (धेनवः) गौओं के तुल्य (अमुष्मिन्) परोक्ष (लोके) देखने योग्य (अमुत्र) अगले जन्म में (सन्तु) हों, वैसा प्रयत्न कीजिये॥२॥

    भावार्थ - जैसे अच्छे प्रकार सेवन की हुई गौ दुग्ध आदि के दान से सब को प्रसन्न करती हैं, वैसे ही वेदी में चयन की हुई ईटें वर्षा की हेतु हो के वर्षादि के द्वारा सब को सुखी करती हैं। मनुष्यों को चाहिये कि एक संख्या को दशवार गुणने से दश (१०), दश को दश बार गुणने से सौ (१००), उसको दश बार गुणने से हजार (१०००), उसको दश बार गुणने से दस हजार (१०,०००), उसको दश वार गुणने से लाख (१,००,०००), उसको दश बार गुणने से दश लाख (१०,००,०००), इसको दश वार गुणने से क्रोड (१,००, ००,०००), इसको दश वार गुणने से दश क्रोड़ (१०,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से अर्ब (१,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश अर्ब (१०,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से खर्ब (१,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश खर्ब (१०,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से नील (१,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश नील (१०,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से पद्म (१,००,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश पद्म (१०,००,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से एक शङ्ख (१,००,००,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश शङ्ख (१०,००,००,००,००,००,००,००,०००) इन संख्याओं की संज्ञा पड़ती हैं। ये इतनी संख्या तो कहीं, परन्तु अनेक चकारों के होने से और भी अङ्कगणित, बीजगणित और रेखागणित आदि की संख्याओं को यथावत् समझें। जैसे भूलोक में ये संख्या हैं, वैसे अन्य लोकों में भी हैं, जैसे यहां इन संख्याओं से गणना की और कारीगरों से चिनी हुई ईटें घर के आकार हो शीत, उष्ण, वर्षा और वायु आदि से मनुष्यादि की रक्षा कर आनन्दित करती हैं, वैसे ही अग्नि में छोड़ी हुई आहुतियां जल, वायु और ओषधियों के साथ मिल के सब को आनन्दित करती हैं॥२॥

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