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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 3
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - भुरिक् शक्वरी स्वरः - धैवतः
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    ओज॑श्च मे॒ सह॑श्च मऽआ॒त्मा च॑ मे त॒नूश्च॑ मे॒ शर्म॑ च मे॒ वर्म॑ च॒ मेऽङ्गा॑नि च॒ मेऽस्थी॑नि च मे॒ परू॑षि च मे॒ शरी॑राणि च म॒ऽआयु॑श्च मे ज॒रा च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओजः॑। च॒। मे॒। सहः॑। च॒। मे॒। आ॒त्मा। च॒। मे॒। त॒नूः। च॒। मे॒। शर्म॑। च॒। मे॒। वर्म॑। च॒। मे॒। अङ्गा॑नि। च॒। मे॒। अस्थी॑नि। च॒। मे॒। परू॑षि। च॒। मे॒। शरी॑राणि। च॒। मे॒। आयुः॑। च॒। मे॒। ज॒रा। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओजस्च मे सहश्च मऽआत्मा च मे तनूश्च मे शर्म च मे वर्म च मेङ्गानि च मेस्थानि च मे परूँषि च मे शरीराणि च मऽआयुश्च मे जरा च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ओजः। च। मे। सहः। च। मे। आत्मा। च। मे। तनूः। च। मे। शर्म। च। मे। वर्म। च। मे। अङ्गानि। च। मे। अस्थीनि। च। मे। परूषि। च। मे। शरीराणि। च। मे। आयुः। च। मे। जरा। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 3
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    पदार्थ -
    (मे) मेरे (ओजः) शरीर का तेज (च) और मेरी सेना (मे) मेरे (सहः) शरीर का बल (च) तथा मन (मे) मेरा (आत्मा) स्वरूप और (च) मेरा सामर्थ्य (मे) मेरा (तनूः) शरीर (च) और सम्बन्धीजन (मे) मेरा (शर्म) घर (च) और घर के पदार्थ (मे) मेरी (वर्म) रक्षा जिससे हो, वह बख्तर (च) और शस्त्र-अस्त्र (मे) मेरे (अङ्गानि) शिर आदि अङ्ग (च) और अङ्गुलि आदि प्रत्यङ्ग (मे) मेरे (अस्थीनि) हाड़ (च) और भीतर के अङ्ग प्रत्यङ्ग अर्थात् हृदय मांस नसें आदि (मे) मेरे (परूंषि) मर्मस्थल (च) और जीवन के कारण (मे) मेरे (शरीराणि) सम्बन्धियों के शरीर (च) और अत्यन्त छोटे-छोटे देह के अङ्ग (मे) मेरी (आयुः) ऊमर (च) तथा जीवन के साधन अर्थात् जिनसे जीते हैं (मे) मेरा (जरा) बुढ़ापा (च) और जवानी ये सब पदार्थ (यज्ञेन) सत्कार के योग्य परमेश्वर से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें॥३॥

    भावार्थ - राजपुरुषों को चाहिये कि धार्मिक सज्जनों की रक्षा और दुष्टों को दण्ड देने के लिये बली सेना आदि जनों को प्रवृत्त करें॥३॥

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