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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 54
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    ए॒वेदिन्द्रं॒ वृष॑णं॒ वज्र॑बाहुं॒ वसि॑ष्ठासोऽअ॒भ्यर्चन्त्य॒र्कैः। स नः॑ स्तु॒तो वी॒रव॑द्धातु॒ गोम॑द् यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः॥५४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व। इत्। इन्द्र॑म्। वृष॑णम्। वज्र॑बाहु॒मिति॒ वज्र॑ऽबाहुम्। वसि॑ष्ठासः। अ॒भि। अ॒र्च॒न्ति॒। अ॒र्कैः। सः। नः॒। स्तु॒तः। वी॒रव॒दिति॑ वी॒रऽव॑त्। धा॒तु॒। गोम॒दिति॒ गोऽम॑त्। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिभि॒रिति॑ स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥५४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवेदिन्द्रँवृषणँवज्रबाहुँवसिष्ठासोऽअभ्यर्चन्त्यर्कैः । स न स्तुतो वीरवद्धातु गोमद्यूयम्पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एव। इत्। इन्द्रम्। वृषणम्। वज्रबाहुमिति वज्रऽबाहुम्। वसिष्ठासः। अभि। अर्चन्ति। अर्कैः। सः। नः। स्तुतः। वीरवदिति वीरऽवत्। धातु। गोमदिति गोऽमत्। यूयम्। पात। स्वस्तिभिरिति स्वस्तिऽभिः। सदा। नः॥५४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 54
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    पदार्थ -
    हे (वसिष्ठासः) अतिशय वास करनेहारे! जिस (वृषणम्) बलवान् (वज्रबाहुम्) शस्त्रधारी (इन्द्रम्) शत्रु के मारनेहारे को (अर्कैः) प्रशंसित कर्मों से विद्वान् लोग (अभ्यर्चन्ति) यथावत् सत्कार करते हैं (एव) उसी का (यूयम्) तुम लोग (इत्) भी सत्कार करो, (सः) सो (स्तुतः) स्तुति को प्राप्त होके (नः) हमको और (गोमत्) उत्तम गाय आदि पशुओं से युक्त (वीरवत्) शूरवीरों से युक्त राज्य को (धातु) धारण करे और तुम लोग (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हमको (सदा) सब दिन (पात) सुरक्षित रक्खो॥५४॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे राजपुरुष प्रजा की रक्षा करें, वैसे राजपुरुषों की प्रजाजन भी रक्षा करें॥५४॥

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