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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 35
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रजा देवता छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    म॒हाना॑म्न्यो रे॒वत्यो॒ विश्वा॒ आशाः॑ प्र॒भूव॑रीः।मैघी॑र्वि॒द्युतो॒ वाचः॑ सू॒चीभिः॑ शम्यन्तु त्वा॥३५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒हाना॑म्न्य॒ इति॑ म॒हाऽना॑म्न्यः। रे॒वत्यः॑। विश्वाः॑। आशाः॑। प्र॒भूव॒रीरिति॑ प्र॒ऽभूव॑रीः। मैघीः॑। वि॒द्युत॒ इति॑ वि॒द्युऽतः॑। वाचः॑। सू॒चीभिः॑। श॒म्य॒न्तु॒। त्वा॒ ॥३५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महानाम्न्यो रेवत्यो विश्वाऽआशाः प्रभूवरीः । मैघीर्विद्युतो वाचः सूचीभिः शम्यन्तु त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    महानाम्न्य इति महाऽनाम्न्यः। रेवत्यः। विश्वाः। आशाः। प्रभूवरीरिति प्रऽभूवरीः। मैघीः। विद्युत इति विद्युऽतः। वाचः। सूचीभिः। शम्यन्तु। त्वा॥३५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 35
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    पदार्थ -
    हे ज्ञान चाहने हारे (सूचीभिः) सन्धान करने वाली क्रियाओं से जो (महानाम्न्यः) बड़े नाम वाली (रेवत्यः) बहुत प्रकार के धन और (प्रभूवरीः) प्रभुता से युक्त (विश्वाः) समस्त (आशाः) दिशाओं के समान (मैघीः) वा मेघों की तड़क (विद्युतः) जो बिजुली उनके समान (वाचः) वाणी (त्वा) तुझ को (शम्यन्तु) शान्तियुक्त करें, उनका तू ग्रहण कर॥३५॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिनकी वाणी दिशा के तुल्य सब विद्याओं में व्याप्त होने और मेघ में ठहरी हुई बिजुली के समान अर्थ का प्रकाश करने वाली है, वे विद्वान् शान्ति से जितेन्द्रियता को प्राप्त होकर बड़ी कीर्ति वाले होते हैं॥३५॥

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