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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 16
    ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    इ॒मा ते॑ वाजिन्नव॒मार्ज॑नानी॒मा श॒फाना॑ सनि॒तुर्नि॒धाना॑।अत्रा॑ ते भ॒द्रा र॑श॒नाऽअ॑पश्यमृ॒तस्य॒ याऽअ॑भि॒रक्ष॑न्ति गो॒पाः॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मा। ते॒ वा॒जि॒न्। अ॒व॒मार्ज॑ना॒नीत्य॑व॒ऽमार्ज॑नानि। इ॒मा। श॒फाना॑म्। स॒नि॒तुः। नि॒धानेति॑ नि॒ऽधाना॑। अत्र॑। ते॒। भ॒द्राः। र॒श॒नाः। अ॒प॒श्य॒म्। ऋ॒तस्य॑। याः। अ॒भि॒रक्ष॒न्तीत्य॑भि॒ऽरक्ष॑न्ति। गो॒पाः ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा ते वाजिन्नवमार्जनानीमा शफानाँ सनितुर्निधाना । अत्रा ते भद्रा रशनाऽअपश्यमृतस्य याऽअभिरक्षन्ति गोपाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इमा। ते वाजिन्। अवमार्जनानीत्यवऽमार्जनानि। इमा। शफानाम्। सनितुः। निधानेति निऽधाना। अत्र। ते। भद्राः। रशनाः। अपश्यम्। ऋतस्य। याः। अभिरक्षन्तीत्यभिऽरक्षन्ति। गोपाः॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 16
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    पदार्थ -
    हे (वाजिन्) घोड़े के तुल्य वेगादि गुणों से युक्त सेनाधीश! जैसे मैं (ते) आप के (इमा) इन प्रत्यक्ष घोड़ों की (अवमार्जनानि) शुद्धि क्रियाओं और (इमा) इन (शफानाम्) खुरों के (सनितुः) रखने के नियम के (निधाना) स्थानों की (अपश्यम्) देखता हूँ (अत्र) इस सेना में (ते) आप के घोड़े की (याः) जो (भद्राः) सुन्दर शुभकारिणी (गोपाः) उपद्रव से रक्षा करनेहारी (रशनाः) लगाम की रस्सी (ऋतस्य) सत्य की (अभिरक्षन्ति) सब ओर से रक्षा करती हैं, उनको मैं देखूँ वैसे आप भी देखें॥१६॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग स्नान से घोड़े आदि को शुद्धि तथा उनके शुम्मों की रक्षा के लिए लोहे के बनाये नालों को संयुक्त और लगाम की रस्सी आदि सामग्री को संयुक्त कर कर अच्छी शिक्षा दे रक्षा करते हैं, वे युद्धादि कार्यों में सिद्धि करनेवाले होते हैं॥१६॥

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