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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 25
    ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    समि॑द्धोऽअ॒द्य मनु॑षो दुरो॒णे दे॒वो दे॒वान् य॑जसि जातवेदः।आ च॒ वह॑ मित्रमहश्चिकि॒त्वान् त्वं दू॒तः क॒विर॑सि॒ प्रचे॑ताः॥२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    समि॑द्ध इति॒ समऽइ॑द्धः। अ॒द्य। मनु॑षः। दु॒रो॒णे। दे॒वः। दे॒वान्। य॒ज॒सि॒। जा॒त॒वे॒द॒ इति॑ जातऽवेदः। आ। च॒। वह॑। मि॒त्र॒म॒ह॒ इति॑ मित्रऽमहः। चि॒कि॒त्वान्। त्वम्। दू॒तः। क॒विः। अ॒सि॒। प्रचे॑ता॒ इति॒ प्रऽचे॑ताः ॥२५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः । आ च वह मित्रमहश्चिकित्वान्त्वन्दूतः कविरसि प्रचेताः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    समिद्ध इति समऽइद्धः। अद्य। मनुषः। दुरोणे। देवः। देवान्। यजसि। जातवेद इति जातऽवेदः। आ। च। वह। मित्रमह इति मित्रऽमहः। चिकित्वान्। त्वम्। दूतः। कविः। असि। प्रचेता इति प्रऽचेताः॥२५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 25
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    पदार्थ -
    हे (जातवेदः) उत्तम बुद्धि को प्राप्त हुए (मित्रमहः) मित्रों का सत्कार करने वाले विद्वन्! जो (त्वम्) आप (अद्य) इस समय (समिद्धः) सम्यक् प्रकाशित अग्नि के तुल्य (मनुषः) मननशील (देवः) विद्वान् हुए (यजसि) सङ्ग करते हो (च) और (चिकित्वान्) विज्ञानवान् (दूतः) दुष्टों को दुःखदाई (प्रचेताः) उत्तम चेतनता वाला (कविः) सब विषयों में अव्याहतबुद्धि (असि) हो सो आप (दुरोणे) घर में (देवान्) विद्वानों वा उत्तम गुणों को (आ, वह) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये॥२५॥

    भावार्थ - जैसे अग्नि दीपक आदि के रूप में घरों को प्रकाशित करता है, वैसे धार्मिक विद्वान् लोग अपने कुलों को प्रकाशित करते हैं। जो सब के साथ मित्रवत् वर्त्तते हैं, वे ही धर्मात्मा हैं॥२५॥

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