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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 5
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    6

    द्वे विरू॑पे चरतः॒ स्वर्थे॑ऽअ॒न्यान्या॑ व॒त्समुप॑ धापयेते।हरि॑र॒न्यस्यां॒ भव॑ति स्व॒धावा॑ञ्छु॒क्रोऽअ॒न्यस्यां॑ दद्य्शे सु॒वर्चाः॑॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्वेऽइति॑ द्वे। विरू॑पे॒ इति॒ विऽरू॑पे। च॒र॒तः॒। स्वर्थे॒ इति॑ सु॒ऽअर्थे॑। अ॒न्यान्येत्यन्याऽअ॑न्या। व॒त्सम्। उप॑। धा॒प॒ये॒ते॒ऽइति॑ धापयेते ॥ हरिः॑। अ॒न्यस्या॑म्। भव॑ति। स्व॒धावा॒निति॑ स्व॒धाऽवा॑न्। शु॒क्रः। अ॒न्यस्या॑म्। द॒दृ॒शे॒। सु॒वर्चा॒ इति॑ सु॒ऽवर्चाः॑ ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्वे विरूपे चरतः स्वर्थेऽअन्यान्या वत्समुप धापयेते । हरिरन्यस्याम्भवति स्वधावाञ्छुक्रोऽअन्यस्यान्ददृशे सुवर्चाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    द्वेऽइति द्वे। विरूपे इति विऽरूपे। चरतः। स्वर्थे इति सुऽअर्थे। अन्यान्येत्यन्याऽअन्या। वत्सम्। उप। धापयेतेऽइति धापयेते॥ हरिः। अन्यस्याम्। भवति। स्वधावानिति स्वधाऽवान्। शुक्रः। अन्यस्याम्। ददृशे। सुवर्चा इति सुऽवर्चाः॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 5
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जैसे (स्वर्थे) सुन्दर प्रयोजनवाली (द्वे) दो (विरूपे) भिन्न-भिन्न रूप की स्त्रियां (चरतः) भोजनादि आचरण करती हैं और (अन्यान्या) एक-एक अलग-अलग समय में (वत्सम्) निरन्तर बोलनेवाले एक बालक को (उप, धापयेते) निकट कर दूध पिलाती हैं, उन दोनों में से (अन्यस्याम्) एक में (स्वधावान्) प्रशस्त शान्ति आदि अमृत तुल्य गुणयुक्त (हरिः) मन को हरनेवाला पुत्र (भवति) होता और (शुक्रः) शीघ्रकारी (सुवर्चाः) सुन्दर तेजस्वी (अन्यस्याम्) दूसरी में हुआ (ददृशे) दीख पड़ता है, वैसे ही सुन्दर प्रयोजनवाले दो काले-श्वेत भिन्न रूपवाले रात्रि-दिन वर्त्तमान हैं और एक-एक भिन्न-भिन्न समय में एक संसाररूप बालक को दुग्धादि पिलाते हैं, उन दोनों में से एक रात्रि में अमृतरूप गुणोंवाला मन का प्रसादक चन्द्रमा उत्पन्न होता और द्वितीय दिनरूप वेला में पवित्रकर्त्ता सुन्दर तेजवाला सूर्यरूप पुत्र दीख पड़ता है, ऐसा तुम लोग जानो॥५॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में अनुभयाभेदरूपकालङ्कार है। जैसे दो स्त्रियां वा गायें सन्तान प्रयोजनवाली पृथक्-पृथक् वर्त्तमान भिन्न-भिन्न समय में एक बालक की रक्षा करें, उन दोनों में से एक में हृदय को प्यारा, महागुणी, शान्तिशील बालक हो और दूसरी में शीघ्रकारी, तेजस्वी, शुत्रुओं कों दुःखदायी बालक होवे; वैसे भिन्न स्वरूपवाले दो रात्रि-दिन अलग-अलग समय में एक संसारस्वरूप बालक की पालना करते हैं। किस प्रकारः—रात्रि अमृतवर्षक, चित्त को करनेहारे चन्द्रमारूप बालक को उत्पन्न करके और दिनरूप-स्त्री तेजोमय सुन्दर प्रकाशवाले सूर्य्यरूप पुत्र को उत्पन्न करके॥५॥

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