Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 71
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - मित्रावरुणौ देवते छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    10

    गाव॒ऽउपा॑वताव॒तं म॒ही य॒ज्ञस्य॑ र॒प्सुदा॑।उ॒भा कर्णा॑ हिर॒ण्यया॑॥७१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गावः। उप॑। अ॒वत॒। अ॒वतम्। म॒हीऽइति॑ म॒ही। य॒ज्ञस्य॑। र॒प्सुदा॑ ॥ उभा। कर्णा॑। हि॒र॒ण्यया॑ ॥७१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गावऽउपावतावतम्मही यज्ञस्य रप्सुदा । उभा कर्णा हिरण्यया ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    गावः। उप। अवत। अवतम्। महीऽइति मही। यज्ञस्य। रप्सुदा॥ उभा। कर्णा। हिरण्यया॥७१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 71
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे मनु्ष्यो! जैसे (रप्सुदा) सुन्दर रूप देनेवाले (उभा) दोनों (कर्णा) कार्यसाधक (हिरण्यया) ज्योतिःस्वरूप (मही) महत्परिमाणवाले सूर्य-पृथिवी (यज्ञस्य) संगत संसार के (अवतम्) कूप के तुल्य रक्षा करनेवाले होते और (गावः) किरण भी रक्षक होवें, वैसे इनकी तुम लोग (उप, अवत) रक्षा करो॥७१॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे किसान लोग कूप के जल से खेतों और वाटिकाओं की सम्यक् रक्षा कर धनवान् होते, वैसे पृथिवी-सूर्य सबके धनकारक होते हैं॥७१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top