यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 51
ऋषिः - दक्ष ऋषिः
देवता - हिरण्यन्तेजो देवता
छन्दः - भुरिक्छक्वरी
स्वरः - धैवतः
8
न तद्रक्षा॑सि॒ न पि॑शा॒चास्त॑रन्ति दे॒वाना॒मोजः॑ प्रथम॒जꣳ ह्ये॒तत्। यो बि॒भर्ति॑ दाक्षाय॒णꣳ हिर॑ण्य॒ꣳ स दे॒वेषु॑ कृणुते दी॒र्घमायुः॒ स म॑नु॒ष्येषु कृणुते दी॒र्घमायुः॑॥५१॥
स्वर सहित पद पाठन। तत्। रक्षा॑सि। न। पि॒शा॒चाः। त॒र॒न्तिः। दे॒वाना॑म्। ओजः॑। प्र॒थ॒म॒जमिति॑ प्रथम॒ऽजम्। हि। ए॒तत् ॥ यः। बि॒भर्त्ति॑। दा॒क्षा॒य॒णम्। हिर॑ण्यम्। सः। दे॒वेषु॑। कृ॒णु॒ते॒। दी॒र्घम्। आयुः॑। सः। म॒नु॒ष्ये᳖षु। कृ॒णु॒ते॒। दी॒र्घम्। आयुः॑ ॥५१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
न तद्रक्षाँसि न पिशाचास्तरन्ति देवानामोजः प्रथमजँ ह्येतत् । यो बिभर्ति दाक्षायणँ हिरण्यँ स देवेषु कृणुते दीर्घमायुः स मनुष्येषु कृणुते दीर्घमायुः ॥
स्वर रहित पद पाठ
न। तत्। रक्षासि। न। पिशाचाः। तरन्तिः। देवानाम्। ओजः। प्रथमजमिति प्रथमऽजम्। हि। एतत्॥ यः। बिभर्त्ति। दाक्षायणम्। हिरण्यम्। सः। देवेषु। कृणुते। दीर्घम्। आयुः। सः। मनुष्येषु। कृणुते। दीर्घम्। आयुः॥५१॥
विषय - अब ब्रह्मचर्य की प्रशंसा का विषय अगले मन्त्र में कहते हैं॥
पदार्थ -
हे मनुष्यो! जो (देवानाम्) विद्वानों का (प्रथमजम्) प्रथम अवस्था वा ब्रह्मचर्य्य आश्रम में उत्पन्न हुआ (ओजः) बल पराक्रम है, (तत्) उसको (न, रक्षांसि) न अन्यों को पीड़ा विशेष देकर अपनी ही रक्षा करनेहारे और (न, पिशाचाः) न प्राणियों के रुधिरादि को खानेवाले हिंसक म्लेच्छाचारी दुष्टजन (तरन्ति) उल्लङ्घन करते। (यः) जो मनुष्य (हि, एतत्) इस (दाक्षायणम्) चतुर को प्राप्त होने योग्य (हिरण्यम्) तेजःस्वरूप ब्रह्मचर्य्य को (बिभर्त्ति) धारण वा पोषण करता है, (सः) वह (देवेषु) विद्वानों में (दीर्घम्, आयुः) अधिक अवस्था को (कृणुते) प्राप्त होता और (सः) वह (मनुष्येषु) मननशील जनों में (दीर्घम्, आयुः) बड़ी अवस्था को (कृणुते) प्राप्त करता है॥५१॥
भावार्थ - जो प्रथम अवस्था में बड़े धर्मयुक्त ब्रह्मचर्य्य से पूर्ण विद्या पढ़ते हैं, उनको न कोई चोर न दायभागी और न उनको भार होता है। जो विद्वान् इस प्रकार धर्मयुक्त कर्म के साथ वर्त्तते हैं, वे विद्वानों और मनुष्यों में बड़ी अवस्था को प्राप्त होके निरन्तर आनन्दित होते और दूसरों को आनन्दित करते हैं॥५१॥
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal