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  • यजुर्वेद - अध्याय 37/ मन्त्र 15
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृद् ब्राह्म्यनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    7

    सम॒ग्निर॒ग्निना॑ गत॒ सं दैवे॑न सवि॒त्रा सꣳ सूर्य्ये॑णारोचिष्ट।स्वाहा॒ सम॒ग्निस्तप॑सा गत॒ सं दैव्ये॑न सवि॒त्रा सꣳसूर्य्ये॑णारूरुचत॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम्। अ॒ग्निः। अ॒ग्निना॑। ग॒त॒। सम्। दैवे॑न। स॒वि॒त्रा। सम्। सूर्य्ये॑ण। अ॒रो॒चि॒ष्ट॒ ॥ स्वाहा॑। सम्। अ॒ग्निः। तप॑सा। ग॒त॒। सम्। दैव्ये॑न। स॒वि॒त्रा। सम्। सूर्य्ये॑ण। अ॒रू॒रु॒च॒त॒ ॥१५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समग्निरग्निना गत सन्दैवेन सवित्रा सँ सूर्येणारोचिष्ट । स्वाहा समग्निस्तपसा गत सन्दैव्येन सवित्रा सँ सूर्येणारूरुचत ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। अग्निः। अग्निना। गत। सम्। दैवेन। सवित्रा। सम्। सूर्य्येण। अरोचिष्ट॥ स्वाहा। सम्। अग्निः। तपसा। गत। सम्। दैव्येन। सवित्रा। सम्। सूर्य्येण। अरूरुचत॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 37; मन्त्र » 15
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जो (अग्निना) स्वयंप्रकाशक जगदीश्वर से (अग्निः) प्रकाशक अग्नि (दैवेन) ईश्वर ने बनाये (सवित्रा) प्रेरक (सूर्येण) सूर्य्य के साथ (सम्) (अरोचिष्ट) सम्यक् प्रकाशित होता है, उस परमात्मा को तुम लोग (स्वाहा) सत्य क्रिया से (सम्, गत) सम्यक् जानो और जो (अग्निः) प्रकाशक ईश्वर (दैव्येन) पृथिवी आदि में हुए (सवित्रा) ऐश्वर्य का कारक (सूर्य्येण) प्रेरक (तपसा) धर्मानुष्ठान से (सम्, अरूरुचत) सम्यक् प्रकाशित होता है, उसको तुम लोग (सम्, गत) सम्यक् प्राप्त होओ॥१५॥

    भावार्थ - जो मनुष्य अग्नि, उत्पादक के उत्पादक, सूर्य्य के सूर्य्य परमात्मा को विशेष कर जानें, उनके लिये इस लोक और परलोक के सुख सम्यक् प्राप्त होते हैं॥१५॥

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