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  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 25
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - ईश्वरो देवता छन्दः - साम्नी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    एधो॑ऽस्येधिषी॒महि॑ स॒मिद॑सि॒ तेजो॑ऽसि॒ तेजो॒ मयि॑ धेहि॥२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    एधः॑। अ॒सि॒। ए॒धि॒षी॒महि॑। स॒मिदिति॑ स॒म्ऽइत्। अ॒सि॒। तेजः॑। अ॒सि॒। तेजः॑। मयि॑। धे॒हि॒ ॥२५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एधोस्येधिषीमहि समिदसि तेजो सि तेजो मयि धेहि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एधः। असि। एधिषीमहि। समिदिति सम्ऽइत्। असि। तेजः। असि। तेजः। मयि। धेहि॥२५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 25
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    पदार्थ -
    हे परमेश्वर! जो आप हमारे आत्माओं में (एधः) प्रकाश करनेवाले इन्धन के तुल्य प्रकाशक (असि) हैं, (समित्) सम्यक् प्रदीप्त समिधा के समान (असि) हैं, (तेजः) प्रकाशमय बिजुली के तुल्य सब विद्या के दिखानेवाले (असि) हैं, सो आप (मयि) मुझ में (तेजः) तेज को (धेहि) धारण कीजिये, आपको प्राप्त होकर हम लोग (एधिषीमहि) सब ओर से वृद्धि को प्राप्त होवें॥२५॥

    भावार्थ - हे मनुष्यो! जैसे र्इंधन से और घी से अग्नि की ज्वाला बढ़ती है, वैसे उपासना किये जगदीश्वर से योगियों के आत्मा प्रकाशित होते हैं॥२५॥

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