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  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 39
    ऋषिः - आगस्त्य ऋषिः देवता - सोमसवितारौ देवते छन्दः - साम्नी बृहती,निचृत् आर्षी पङ्क्ति, स्वरः - मध्यमः, पञ्चमः
    11

    देव॑ सवितरे॒ष ते॒ सोम॒स्तꣳ र॑क्षस्व॒ मा त्वा॑ दभन्। ए॒तत्त्वं दे॑व सोम दे॒वो दे॒वाँ२ऽउपागा॑ऽइ॒दम॒हं म॑नु॒ष्यान्त्स॒ह रा॒यस्पोषे॑ण॒ स्वाहा॒ निर्वरु॑णस्य॒ पाशा॑न्मुच्ये॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    देव॑। स॒वि॒तः॒। ए॒षः। ते॒। सोमः॑। तम्। र॒क्ष॒स्व॒। मा। त्वा॒। द॒भ॒न्। ए॒तत्। त्वम्। दे॒व॒। सो॒म॒। दे॒वः। दे॒वान्। उप॑। अ॒गाः॒। इ॒दम्। अ॒हम्। म॒नु॒ष्या॒न्। स॒ह। रा॒यः। पोषे॑ण। स्वाहा॑। निः। वरु॑णस्य। पाशा॑त्। मु॒च्ये॒ ॥३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देव सवितरेष ते सोमस्तँ रक्षस्व मा त्वा दभन् । एतत्त्वन्देव सोम देवो देवाँऽउपागा इदमहम्मनुष्यान्त्सह रायस्पोषेण स्वाहा निर्वरुणस्य पाशान्मुच्ये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देव। सवितः। एषः। ते। सोमः। तम्। रक्षस्व। मा। त्वा। दभन्। एतत्। त्वम्। देव। सोम। देवः। देवान्। उप। अगाः। इदम्। अहम्। मनुष्यान्। सह। रायः। पोषेण। स्वाहा। निः। वरुणस्य। पाशात्। मुच्ये॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 39
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    पदार्थ -
    हे (देव) सब विद्याओं के प्रकाश करने वाले ऐश्वर्य्यवान् विद्वान् सभाध्यक्ष! जैसे मैं आप के सहाय से अपने ऐश्वर्य्य को रखता हूं, वैसे तू जो (एषः) यह (ते) तेरा (सोमः) ऐश्वर्य्यसमूह है (तम्) उसको (रक्षस्व) रख। जैसे मुझ को शत्रुजन दुःख नहीं दे सकते हैं, वैसे (त्वाम्) तुझे भी (मा दभन्) न दे सकें। हे (देव) सुख के देने और (सोम) सज्जनों के मार्ग में चलाने हारे राजा! (त्वम्) तू (एतत्) इस कारण सभाध्यक्ष और (देवः) परिपूर्ण विद्या प्रकाश में स्थित हुआ (देवान्) श्रेष्ठ विद्वानों के (उप) समीप (अगाः) जा और मैं भी जाऊं। जैसे मैं (इदम्) इस आचरण को करके (रायः) अत्यन्त धन की (पोषेण) पुष्टताई के साथ (मनुष्यान्) विचारवान् पुरुष और (देवान्) विद्वानों को प्राप्त होकर (वरुणस्य) दुःख से तिरस्कार करने वाले दुष्टजन की (पाशात्) बन्धन से (मुच्ये) छूटूं, वैसे तू भी (निः) निरन्तर छूट॥३९॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब मनुष्यों को योग्य है कि जिस अप्राप्त ऐश्वर्य्य की पुरुषार्थ से प्राप्ति हो, उस की रक्षा और उन्नति, धार्मिक मनुष्यों का सङ्ग और इससे सज्जनों का सत्कार तथा धर्म का अनुष्ठान कर, विज्ञान को बढ़ा के दुःखबन्धन से छूटें॥३९॥

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